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प्रश्न :
अनेक इतिहासकार इस मूलभूत प्रश्न पर बहस करते हैं कि ब्रिटिश की भारत विजय संयोगवश थी या उद्देश्यपूर्ण? इस बहस का तार्किक विश्लेषण करें एवं बताएँ कि भारत में ब्रिटिश सफलता के प्रमुख कारण क्या थे?
28 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
जॉन सीले जैसे इतिहासकार मानते हैं कि ब्रिटिश की भारत विजय गैर-इरादतन एवं संयोगवश थी। इनके अनुसार ब्रिटिश भारत में केवल व्यापार करने आए थे और उनका इस क्षेत्र पर शासन स्थापित किरने का कोई इरादा नहीं था। लेकिन वे न चाहते हुए भी भारतीयों द्वारा स्वयं उत्पन्न किये गए राजनीतिक संकट में फँस गए और फिर वे यहाँ के क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिये बाध्य हुए।
दूसरी तरफ, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अंग्रेज भारत में एक व्यापक एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना के लिये आए थे। उन्होंने इसके लिये एक व्यापक रणनीति एवं सुनियोजित योजना बनाई एवं इस पर काम कर उन्होंने भारतीय क्षेत्रों को अपने अधिकार में ले लिया।
वस्तुतः आरंभिक दौर में अंग्रेजों ने गैर-इरादतन रूप से भारतीय क्षेत्रों को हासिल किया, लेकिन बाद में भारत भेजे जाने वाले अंग्रेज राजनीतिज्ञों एवं प्रशासकों में भारतीय क्षेत्रों पर कब्जा करने और साम्राज्य स्थापित करने के लिये नीतियाँ बनाई थी। ज्यूडिथ ब्राउन के अनुसार, अंग्रेजों ने अविलंब लाभ प्राप्त करने, प्रशासकों की व्यक्तिगत लालसाएँ एवं महत्त्वाकांक्षाएं पूरी करना आदि के साथ-साथ यूरोप में हुए राजनीतिक घटनाक्रमों के प्रभाव कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने भारत में अंग्रेजों को उनका राजनीतिक क्षेत्र बढ़ाने के लिये प्रवृत्त किया।इस प्रकार, 18वीं शताब्दी में, पश्चिम यूरोपीय देशों ने अपने व्यापारिक एवं राजनीतिक हितों को सुनिश्चित करने के लिये वैश्विक क्षेत्रीय विस्तार का चरण प्रारंभ किया था तथा उपनिवेशों की स्थापना की। अंग्रेजों की भारत विजय को इस वैश्विक राजनीतिक घटना क्रम के एक हिस्से के तौर पर देखा जा सकता है।
भारत में ब्रिटिश सफलता के कारणः
- उत्कृष्ट हथियारः 18वीं शताब्दी में भारतीय शक्तियों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले हथियार बेहद धीमे और भारी थे जबकि अंग्रेजों द्वारा प्रयोग की जाने वाली यूरोपीय बंदूकें एवं तोपें इन भारतीय हथियारों के बजाय अत्यंत उत्कृष्ट थीं।
- सैन्य अनुशासनः अंग्रेजी सैनिकों को नियमित वेतन का भुगतान किया जाता था एवं अनुशासन की कड़ी व्यवस्था थी जबकि भारतीय शासकों के पास राजस्व की कमी के कारण सैनिकों को नियमित भुगतान करना मुश्किल था जिससे सैनिक गैर-अनुशासित विद्रोही थे तथा जब स्थिति ठीक न हो तो विरोधी खेमे में भी चले जाते थे।
- कुशल नेतृत्वः अंग्रेजों के पास क्लाइव, हेस्टिंग्स, मुनरो, डलहौजी, आयरकूट जैसे प्रथम श्रेणी के कुशल नेतृत्वकर्ता थे तो द्वितीय श्रेणी नेतृत्वकर्ता भी कुशल थे। वहीं भारत में हैदरअली, टीपू सुल्तान, जसवंत राव होल्कर जैसे प्रतिभाशाली नेतृत्वकर्ता तो थे लेकिन दूसरी श्रूणी के नेतृत्वकर्ताओं की कमी थी।
- वित्तीय सुदृढ़ताः अंग्रेज वित्तीय रूप से मजबूत थे जिससे कंपनी अच्छे हथियार खरीद सकती थी एवं लगातार होने वाले युद्धों का वित्तीयन भी संभव था।
- राष्ट्रवादी भावनाः अंग्रेजों में राष्ट्रीय गौरव कूट-कूट कर भरा था जबकि भारत में उस समय राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था। अतः अंग्रेज एक जूट होकर लड़ते थे जबकि भारतीय आपस में ही लड़ने लगते, जिसका फायदा अंग्रेजों को मिला।
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