1929 ई. में आई विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति लोगों के विश्वास को कम किया, जिसका एक उदाहरण जर्मनी में हिटलर के अधिनायकतंत्र के उदय के रूप में सामने आया। चर्चा कीजिये।
29 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासअक्तूबर, 1929 ई. न्यूयॉर्क के प्रसिद्ध शेयर बाजार ‘वॉलस्ट्रीट’ में शेयरों की कीमतों में भारी गिरावट के साथ एक विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का आगाज हुआ। 1933 ई. तक विश्व के राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब हो गई थी। मंदी के कारण जनता के सभी वर्गों को बेकारी, भुखमरी आदि अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा जिससे उनमें निराशा, अस्थिरता एवं असुरक्षा की वृद्धि हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति हूवर द्वारा विश्व को आर्थिक संकट से बचाने के लिये बनाई गई ‘यंग योजना’ तथा विश्व के 64 राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा 1933 में किया गया ‘लंदन सम्मेलन’ भी इस संकट का कोई सार्थक हल निकालने में असफल रहा।
आर्थिक संकट से उत्पन्न उस ‘स्थिति’ का अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। लोकतंत्रीय सरकारें मंदी से उत्पन्न जटिल समस्याओं को सुलझाने में विफल रही। इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता का विश्वास कम हो गया। उस समय तक लोकतंत्र और उदार पूंजीवाद, दोनों एक दूसरे के पूरक तथा राष्ट्रीय उन्नति के लिये आवश्यक माने जाते थे। किंतु, आर्थिक मंदी ने लोगों की इन व्यवस्थाओं में आस्था को कम कर दिया। कई राष्ट्रों में जनता ने सत्तारूढ़ दलों के खिलाफ वोट देकर उन्हें अपदस्थ किया। यूरोप के विभिन्न भागों में तो निम्न एवं मध्यम वर्ग फासिस्टवाद एवं साम्यवाद की ओर आकर्षित होने लगा।
1929 ई. के आर्थिक संकट ने ही जर्मनी में राष्ट्रीय समाजवाद के आकस्मिक उत्थान में बड़ा योगदान दिया। संकट की शुरुआत से पहले तक हिटलर और उसके राजनीतिक दल की शक्ति बहुत कम थी। परंतु, आर्थिक संकट से जर्मनी में उभरी परिस्थितियों का उसने अधिकतम लाभ उठाया। नात्सी दल प्रारम्भ से ही प्रचार कर रहा था कि जर्मनी में ‘प्रथम विश्व युद्ध की क्षतिपूर्ती’ की राशि चुकाने की क्षमता नहीं है। आर्थिक मंदी ने उनकी बात को सही साबित कर दिया। मंदी के कारण उत्पन्न हुई अभूतपूर्व आर्थिक दिक्कतों का सामना करने के लिये जर्मन सरकार ने अतिरिक्त कर लगाये तथा सार्वजनिक व्यय में भारी कटौती की। इससे चांसलर ब्रुनिंग के विरूद्ध रिखस्टैग (जर्मन संसद) में विरोध बढ़ने लगा। मजबूरन ब्रुनिंग को ‘आपाती आज्ञाओं’ द्वारा शासन चलाने के लिये विवश होना पड़ा।
नात्सी नेताओं ने बढ़ती बेकारी और तीव्र असंतोष का लाभ उठाने के उद्देश्य से जर्मनी का तत्कालीन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिये गणतंत्र को दोषी ठहराया और जनता का अधिकाधिक समर्थन प्राप्त किया। इस प्रकार एक गणतांत्रिक व्यवस्था को गर्त में धकेल कर हिटलर ने अधिनायकतंत्र की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।