हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में मौजूद असुविधाओं के बारे में बताते हुए सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन असुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालें।
03 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
विश्व में प्रचलित शासन प्रणालियों और भारत की शासन व्यवस्था को बतलाते हुए उत्तर आरंभ करें-
विश्व में मुख्यत: एकात्मक और संघीय शासन प्रणालियों का प्रचलन देखने को मिलता है। भारत की शासन व्यवस्था इन दोनों प्रणालियों के मध्य विद्यमान संतुलन पर आधारित है। यह संघीय होते हुए भी एकात्मक शासन व्यवस्था की ओर झुकी हुई है।
विषय-वस्तु के पहले भाग में हम सहकारी संघवाद और उसकी पृष्ठभूमि पर चर्चा करेंगे-
वर्तमान में सहकारी संघवाद की संकल्पना पर काफी ज़ोर दिया जा रहा है। इसमें समस्याओं के समाधान के लिये केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों की सामूहिक भागीदारी पर बल दिया जाता है। इस संदर्भ में भारतीय शासन प्रणाली के सहकारी संघवाद की संज्ञा दी जा सकती है। स्वतंत्रता पश्चात् के आरंभिक वर्षों में भारत में सहकारी संघवाद की भावना प्रबल नहीं हो गई थी परंतु 1990 के पश्चात् केंद्र में गठबंधन व विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकार बनने से परिसंघवाद की भावना को बल मिला। हालाँकि आपसी विवादों तथा स्वार्थपूर्ण राजनैतिक उद्देश्यों ने सहकारी संघवाद के मार्ग में बाधा पैदा की जिसके कारण सकारात्मक परिणाम नहीं मिल सका।
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम सहकारी संघवाद की दिशा में उठाए गए कदमों पर चर्चा करेंगे-
अंत में प्रश्नानुसार सारगर्भित, संक्षिप्त और संतुलित निष्कर्ष लिखें-
विभिन्न सुधारों व अन्य सुधारों के साथ वर्तमान में विद्यमान संरचनाओं में प्रशासकीय व विधायी स्तर पर उत्पन्न असुविधाओं के समाधान द्वारा सहकारी संघवाद को सशक्त किया जा सकता है। लेकिन स्वार्थपूर्ण राजनैतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिये राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद और अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग सहकारी संघवाद के साथ-साथ केंद्र-राज्य संबंधों को भी प्रभावित करता है। सरकारिया व पुंछी आयोग की सिफारिशें तथा संघ सरकार की देश की एकता-अखंडता को बनाए रखने की इच्छाशक्ति सहकारी संघवाद को मज़बूत करने में सहयोगी सिद्ध होगी।