पारिस्थितिकी तंत्र में अतिशय मानवीय हस्तक्षेप ने वायुमंडलीय वातावरण से संबंधित गंभीर समस्याओं को जन्म दिया है। ऐसी कुछ प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिये।
13 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरणपिछले कई दशकों से मानवीय गतिविधियों विशेषतः तीव्र निर्वनीकरण, जीवाश्म ईंधनों के अत्यधिक उपयोग, औद्योगिक इकाईयों एवं परिवहन के साधनों के उत्सर्जन में अतिशय वृद्धि के कारण वायुमंडलीय वातावरण में असंतुलन देखने को मिल रहे हैं। ये असंतुलन मुख्यतः तीन प्रकार के हैं-
(i) भूमंडलीय तापन (ii) ओजोन छिद्र और (iii) अम्लीय वर्षा
(i) भूमंडलीय तापनः औद्योगिक क्रांति के बाद से वातावरण में बढ़ी कार्बनडाईऑक्साइड (CO2), कार्बनमोनोक्साइड (CO), मीथेन (CH4), क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) आदि गैसों ने ‘हरित गृह प्रभाव’ द्वारा पृथ्वी के वातावरण में तापमान में वृद्धि कर दी है। यदि वातावरण में CO2 की मात्रा यूँ ही बढ़ती गई तो 1900 ई. की तुलना में 2030 ई. में विश्व के तापमान में 3ºC की वृद्धि हो जाएगी। भूमंडलीय तापन के कारण हिम क्षेत्र पिघलेंगे जिसके परिणामस्वरूप समुद्री जलस्तर 2.5 से 3 मीटर बढ़ जाएगा। इससे अनेक द्वीपीय देश और महाद्वीपों के तटीय क्षेत्रों के डूबने की आशंका है। तापमान बढ़ने से अनेक सूक्ष्म जीव व जीव-जंतु भी विनष्ट हो सकते हैं जिससे जैव-विविधता में कमी आएगी।
(ii) ओजोन छिद्रः समताप मंडल में उपस्थित ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर एक ‘जीवन रक्षक छतरी’ का कार्य करती है। पराबैंगनी किरणों से आँखें के रोग होने का खतरा रहता है तथा इनसे कृषि पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। 1973 ई. में ‘फॉरमैन’ द्वारा सर्वप्रथम अंटार्कटिका में ‘ओजोन छिद्र’ देखा गया। ओजोन में छिद्र का मुख्य कारक ‘क्लोरीन’ है। क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC), हाईड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC), हैलोजेन्स, कार्बन टेट्राक्लोराइड, मिथाइल क्लोरोफार्म व मिथाइल ब्रोमाइड जैसे रसायनों से क्लोरीन उत्पन्न होती है। ये रसायन रेफ्रीजरेटरों, एयर कंडीशनरों, स्कैनर, प्लास्टिक आदि में इस्तेमाल होते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार क्लोरीन का एक अणु ओजोन के एक लाख अणुओं को तोड़ सकता है। 1987 में हुए मांट्रियल सम्मेलन के पश्चात् ओजोन क्षरण के लिये उत्तरदायी रसायनों के प्रयोग में कटौती हेतु विभिन्न राष्ट्रों ने सहमति दी थी। एक वैज्ञानिक आंकलन ‘ओजोन रिक्तीकरण का वैज्ञानिक आंकलन-2010’ के अनुसार यदि वैश्विक प्रयास इसी प्रकार जारी रहे तो अनुमानतः 2050 ई. तक ओजोन स्तर पहले की स्थिति में आ जाएगा।
(iii) अम्लीय वर्षाः वायुमंडल में सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, क्लोरीन व फ्लोरीन गैसों की वृद्धि वर्षा जल में सल्फ्यूरिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का निर्माण कर वर्षा जल को अम्लीय बना देती हैं। ऐसा वर्षा जल धरती पर वनस्पतियों एवं संगमरमर की इमारतों को बुरी तरह प्रभावित करता है। झीलों की अम्लीयता बढ़ने से मत्स्य उद्योग भी प्रभावित होता है।
अतः पारिस्थितिकी तंत्र में मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप उभरी वायुमंडलीय वातावरण की ये समस्याएँ मानव अस्तित्व के समक्ष उपस्थित गंभीर चुनौतियाँ है, जिनका समाधान सतत विकास के सिद्धांत को अपनाकर ही संभव हो सकता है।