1857 ई. की क्रान्ति के उपरांत भारतीय रियासतों के प्रति ब्रिटिश नीति में आए बदलाव पर टिप्पणी कीजिये।
20 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास1857 की क्रान्ति से अंग्रेज़ों को इस बात का अच्छी तरह अहसास हो गया था कि एक सुसंगठित जन-विद्रोह कभी भी ब्रिटिश शासन के लिये एक गंभीर चुनौती बन सकता है। दोबारा ऐसी बड़ी घटना न हो, इसके लिये ब्रिटिश प्रशासन ने अपनी अनेक नीतियों में बड़े बदलाव किये जैसे-सेना का व्यवस्थित पुनर्गठन, हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य फूट डालना, बाँटों व राज करो की नीति, भारतीय रियासतों के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन इत्यादि।
क्रान्ति से पहले भारतीय रियासतों के साथ अंग्रेज़ों के संबंध दो चरणीय नीति से निर्देशित थे-पहली, साम्राज्य की रक्षा के लिये उनसे संबंधों की स्थापना व उनका उपयोग तथा दूसरा, उन्हें पूर्णतया साम्राज्य के अधीन कर लेना। 1857 के विद्रोह के दौरान अनेक भारतीय रियासतों ने या तो ब्रिटिश शासन का साथ दिया या तटस्थ रहे। विद्रोह के पश्चात् सराकर ने इनकी राजभक्ति को पुरस्कृत करने के लिये विलय की नीति त्याग दी। अब नयी नीति शासकों को पदच्युत करने या उन्हें दण्ड देने की थी न कि उनके राज्य को विलय करने की। सरकार ने रियासतों को उनकी क्षेत्रीय अखंडता की गारंटी भी दी तथा घोषणा की गई कि सरकार रियासतों द्वारा किसी उत्तराधिकारी को गोद लेने के अधिकार का सम्मान करेगी। दरअसल सरकार का मूल मन्तव्य भविष्य में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध होने वाले किसी भी राजनीतिक आंदोलन के दौरान इन रियासतों को बफ़र की तरह इस्तेमाल करने का था।
1876 में ब्रिटिश संसद ने ‘रायल टाइटल्स’ नाम से एक अधिनियम पारित किया, जिसके द्वारा साम्राज्ञी विक्टोरिया ने समस्त ब्रिटिश प्रदेशों व रियासतों समेत ‘केसर-ए-हिन्द’ अथवा ‘भारत की साम्राज्ञी’ की उपाधि धारण की। तत्पश्चात् लार्ड कर्जन ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि सभी रजवाड़े अपने-अपने क्षेत्र में ब्रिटिश ताज के प्रतिनिधि के तौर पर शासन करेंगे। सरकार ने अपने रेजिडेंट/अधिकारियों की नियुक्ति द्वारा राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप द्वारा अपनी ‘सर्वोच्च श्रेष्ठता’ की नीति को भी बनाए रखा। कालांतर में सरकार ने संचार, रेलवे, सड़क, टेलीग्राफ, नहरों, पोस्ट-ऑफिस आदि का इन रियासतों में विकास कर, राज्यों में दखल देना जारी रखा। राज्यों के मामलों में दखल देने के पीछे सरकार का एक उद्देश्य यह था कि इससे राष्ट्रवाद के उदय व लोकतांत्रिक भावनाओं के प्रसार को रोका जा सके। फिर भी, इन राज्यों में आधुनिक प्रशासनिक संस्थानों की स्थापना से राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन ही मिला।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि यद्यपि 1857 की क्रान्ति के पश्चात् भारतीय रियासतों के प्रति ब्रिटिश नज़रिये में बदलाव आया परंतु यह बदलाव भी मात्र शोषण और अधीन रखने के तरीके में था, न कि सुधार या सहायता के उद्देश्य के लिये।