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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में सरकार ने संस्कृति मंत्रालय (Culture Ministry) के अंतर्गत आने वाले विभिन्न स्वायत्त संस्थानों को उनको प्रदान की जाने वाली राजस्व राशि का एक हिस्सा स्वयं सृजित करने का निर्देश दिया है। इन संस्थानों की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करते हुए बताएँ कि इन संस्थानों को किस प्रकार प्रबंधित किया जाए कि ये आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा सकें?

    22 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    सरकार ने संस्कृति मंत्रालय के अधीन आने वाले एवं राज्य द्वारा वित्त पोषित संस्थानों को अपने बजट के 25-30% राजस्व को स्वयं अपने आंतरिक संसाधनों से सृजित करने का निर्देश दिया है और अंततः इन संस्थानों को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य तय किया गया। संस्कृति मंत्रालय के अधीन ऐसी 30 से अधिक संस्थाएँ हैं। हालाँकि, इनमें से कुछ संस्थाओं ने इस कदम का स्वागत किया है कि यह उनकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाएगा, जबकि कुछ संस्थाओं ने इसका विरोध किया है कि ये उनके मूल चरित्र को नष्ट कर देगा।

    इन संस्थाओं की वर्तमान स्थिति

    • वर्तमान में ऐसी अधिकांश संस्थाएँ कलाकारों द्वारा संचालित होती हैं, जिनके पास प्रशासन एवं प्रबंधन का कोई ज्ञान एवं प्रशिक्षण नहीं होता।
    • राज्य द्वारा संचालित अधिकांश सांस्कृतिक संस्थाएँ सृजनशील समुदायों एवं उनकी सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण के लिए प्रभावी भूमिका निभाने में नाकाम रही हैं। सांस्कृतिक ज्ञान एवं कौशल के संरक्षण के अभाव में सांस्कृतिक वातावरण समाप्त होने लगा है। इन कलाओं के कौशल के हाशिये पर चले जाने का खतरा पैदा हो गया है।
    • कोई सांस्कृतिक नीति नहीं है जो इस जटिल क्षेत्र के लिए एक समग्र एवं यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रदान करे।
    • नीतियाँ तैयार करने वाली समितियों में अधिकांशतः कलाकार एवं सांस्कृतिक शिक्षाविद् शामिल होते हैं। इनमें सामान्यतः प्रबंधन पेशेवरों एवं सांस्कृतिक अर्थशास्त्रियों को शामिल नहीं किया जाता अतः इनका प्रबंधन ढाँचा कमजोर होता है।
    • सांस्कृतिक प्रबंधन पेशेवरों की अनुपस्थिति में इन संस्थाओं का प्रबंधन प्रभार नौकरशाहों के पास रहता है जो संस्कृति पर अंतर्राष्ट्रीय संवादों को समझ नहीं पाते क्योंकि वे इसकी शब्दावली से अपरिचित होते हैं। वे भारतीय परिस्थिति एवं भारतीय कलाकारों के हितों को दृष्टिगत रखते हुए सांस्कृतिक वैचारिक ढाँचे को समझने में नाकाम रहते हैं।

    इन संस्थानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए क्या करना चाहिए?
    सरकार को पेशेवर सांस्कृतिक प्रबंधनों का एक कैडर बनाने की ज़रूरत है जो जहाँ कुशल एवं प्रशिक्षित सांस्कृतिक पेशेवर मिल सकें। जिनमें उपमहाद्वीप की व्यापक विविधतापूर्ण एवं जटिल संस्कृति एवं पारंपरिक ज्ञान के प्रति संवेदनशीलता एवं समझ होनी चाहिए। ऐसे व्यक्ति इन ह्रासोन्मुख संस्थाओं के लिए व्यावसायिक योजना बनाने में सक्षम होंगे एवं उन्हें दर्शकों और बाजार से जोड़ने के लिए एक विजन प्रदान करेंगे। ये पारंपरिक ज्ञान कौशल और रचनात्मक अभिव्यक्तियों के संरक्षण के लिए व्यावहारिक रणनीति तैयार करेंगे। 

    इस प्रकार, इन संगठनों को आत्मनिर्भर एवं प्रासंगिक बनाए रखना आवश्यक है अन्यथा हम अपनी विशाल सांस्कृतिक पूंजी को खोने का खतरा मोल ले रहे हैं।

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