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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्या भाषायी राज्यों के गठन ने भारतीय एकता के उद्देश्य को मज़बूती प्रदान की है?

    01 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    भूमिका में:


    स्वतंत्रता पश्चात् राज्यों के पुनर्गठन में आने वाली समस्याओं का जिक्र करते हुए उत्तर आरंभ करें-

    स्वतंत्रता के पश्चात् ही भारत के सामने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का सवाल आ खड़ा हुआ। यह राष्ट्र की एकता और समेकन का महत्त्वपूर्ण पहलू था। गांधी जी सहित अन्य नेताओं द्वारा कमोबेश यह स्वीकार कर लिया गया था कि आज़ाद भारत अपनी प्रशासनिक इकाइयों के सीमा निर्धारण को भाषायी सिद्धांत के आधार पर करेगा लेकिन आज़ादी के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व में यह विचार व्यक्त किया गया कि इस समय देश की सुरक्षा, एकता और आर्थिक संपन्नता पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिये।

    विषय-वस्तु में:


    विषय-वस्तु के पहले भाग में हम भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की पृष्ठभूमि बताएंगे-

    1948 में एस.के. धर के नेतृत्व में बने भाषायी राज्य आयोग तथा जे.वी.पी. समिति ने भी तात्कालिक रूप से भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के विरुद्ध सलाह दी। हालाँकि इसके बाद पूरे देश में राज्यों के पुनर्गठन के लिये व्यापक जनांदोलन शुरू हो गए, जिनमें मद्रास प्रेसीडेंसी से अलग आंध्र राज्य बनाने की मांग सबसे प्रबल थी। अक्तूबर 1952 में पोट्टी श्रीरामलू की आमरण अनशन के चलते मृत्यु हो गई, इसके पश्चात् हुई हिंसा के कारण सरकार को 1953 में आंध्र प्रदेश के रूप में नया राज्य बनाना पड़ा। इसके बाद देश के अन्य क्षेत्रों में भी भाषायी आधार पर राज्यों की मांग के जोर पकड़ने के कारण 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1956 में पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम द्वारा भाषायी आधार पर 14 राज्यों तथा 6 केंद्रशासित प्रदेशों का गठन हुआ।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम, भाषायी आधार पर राज्यों के गठन ने किस प्रकार भारतीय एकता को मज़बूती प्रदान की, इस पर चर्चा करेंगे-

    • भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का कार्य कर राष्ट्रीय नेतृत्व ने राष्ट्र की एकता के सामने उत्पन्न प्रश्नचिह्न को समाप्त कर दिया जो संभवत: विघटनकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे सकता था।
    • अत: भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन एक तरह से राष्ट्रीय एकीकरण का आधार माना गया क्योंकि जहाँ भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा किया वहीं, उसने जनता की भावनाओं का भी मान रखा।
    • इससे लोगों के अंदर यह भावना बलवती हुई कि स्वतंत्र भारत में उनकी इच्छाओं, भावनाओं तथा सांस्कृतिक अस्मिता के साथ-साथ उनकी क्षेत्रीय भाषा को भी महत्त्व दिया जा रहा है।
    • इसके अलावा यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भाषायी राज्यों के पुनर्गठन ने देश के संघीय ढाँचे को प्रभावित नहीं किया, केंद्र एवं राज्य के संबंध पूर्ववत बने रहे।
    • भाषा के आधार पर राज्यों के गठन तथा राज्य भाषा की अवधारणा ने लोगों को मातृभाषा में सरकार से संपर्क स्थापित करने तथा प्रशासनिक कार्यों को पूर्ण करने की सहूलियत प्रदान की।
    • इसके अतिरिक्त त्रि-भाषा सिद्धांत ने हिंदी व अंग्रेज़ी के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने संपूर्ण भारतीयों के बीच संचार की सुविधा तो प्रदान की ही, आर्थिक विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    विषय-वस्तु के तीसरे भाग में हम राज्यों के गठन के आधार संबंधित कारणों में आए परिवर्तन पर चर्चा करेंगे-

    समय के साथ-साथ भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग कमज़ोर पड़ती गई तथा उसका आधार प्रशासनिक शिथिलता तथा आर्थिक विषमता हो गई। इसके आधार पर पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ-साथ झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड राज्यों का गठन हुआ। हाल ही के वर्षों में इसमें एक नवीन प्रवृत्ति देखने को मिली, जो राज्य भाषा के आधार पर निर्मित हुए थे उनमें भी पुन: राज्य के गठन की मांग ज़ोर पकड़ने लगी है। इसी कड़ी में नवीनतम राज्य तेलंगाना का निर्माण हुआ।

    निष्कर्ष


    अंत में प्रश्नानुसार संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    इस प्रकार देखा जाए तो राज्यों के पुनर्गठन ने भारत की एकता को कमज़ोर नहीं किया बल्कि संपूर्ण रूप से देखा जाए तो मज़बूत ही किया है परंतु यह विभिन्न राज्यों के मध्य सभी विवादों और समस्याओं का समाधान नहीं कर पाया। विभिन्न राज्यों के बीच सीमा विवाद, भाषायी अल्पसंख्यकों की समस्या के साथ-साथ नदी जल बँटवारे की समस्या जैसे प्रश्न अभी भी अनसुलझे पड़े हैं।

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