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प्रश्न :
ब्रिटिश शासनकाल में स्थानीय स्वशासन के संबंध में लार्ड रिपन के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता। चर्चा कीजिये।
29 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
लार्ड रिपन का कार्यकाल प्रायः इलबर्ट बिल, प्रथम फैक्टरी एक्ट तथा भारतीय भाषा समाचार पत्रों से प्रतिबंध हटाने जैसी घटनाओं के लिये जाना जाता है। परंतु, रिपन के कार्यकाल का एक बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान स्थानीय स्वशासन पर सरकारी प्रस्ताव लाना था। रिपन देश की नगरपालिकाओं को विकसित करना चाहता था क्योंकि उसका मानना था कि स्थानीय संस्थाओं से ही देश की राजनीतिक शिक्षा आरंभ होती है। रिपन का मुख्य उद्देश्य इन संस्थाओं के विकास द्वारा देश के प्रशासन को उत्तम बनाना ही नहीं बल्कि इनको राजनीतिक और लोकप्रिय शिक्षा का साधन बनाना भी था।
रिपन के कार्यकाल में ग्रामीण प्रदेशों में स्थानीय बोर्डों की स्थापना की गई। प्रत्येक जिले में जिला उपविभाग, तालुका अथवा तहसील बोर्ड बनाने की आज्ञा हुई। नगरों में नगरपालिकाएँ स्थापित की गईं। इन स्थानीय संस्थाओं को निश्चित कार्य तथा आय के साधन दिये गए। यहाँ गौर करने की बात यह थी कि इन संस्थाओं में गैर-सरकारी सदस्यों की संख्या अधिक होती थी। संस्थाओं में सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम कर दिया गया तथा आशा की गई कि सरकार आज्ञा देने की बजाय उनका मार्गदर्शन करे। इन बोर्डों के अध्यक्ष भी सरकारी नहीं होते थे बल्कि इनके सदस्यों द्वारा ही चुने जाते थे। फिर भी, कुछ कार्यों के लिये सरकारी अनुमति आवश्यक थी, यथा- ऋण लेना, एक निश्चित राशि से अधिक व्यय वाले कार्य पर व्यय के लिये अनुमति, अधिकृत मदों से भिन्न पर कर लगाना, नगरपालिका की सम्पत्ति को बेचना इत्यादि।
इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भिन्न-भिन्न स्थानों में 1883-85 के बीच स्थानीय स्वशासन अधिनियम पारित किये गए और 1884 के ‘मद्रास स्थानीय बोर्ड का अधिनियम’ के अनुसार स्थानीय संस्थानों को रोशनी, गलियों की स्वच्छता, शिक्षा, जल संभरण और चिकित्सा सहायता कार्य सौंप दिया गया। इस प्रकार के अधिनियम पंजाब और बंगाल में भी बनाये गए।
अतः यह कहना उचित ही प्रतीत होता है कि आधुनिक स्थानीय स्वशासन की प्रारम्भिक नींव रखने का श्रेय रिपन को दिया जा सकता है तथा इस संबंध में उसके योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
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