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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    19वीं शताब्दी में हुये सुधार आन्दोलनों ने अप्रत्यक्ष: राष्ट्रीय एकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया था। चर्चा कीजिये?

    03 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    19 वीं शताब्दी में भारत में अनेक समाज सुधार आन्दोलन चले जिनका मुख्य लक्ष्य समाज में फैली बुराइयों, रूढ़ियों एवं प्रथाओं को समाप्त कर भारतीय समाज में आधुनिकता का विकास करना तथा भारत के सांस्कृतिक एवं बौद्धिक पृथक्करण की समाप्ति करना था । कुछ आन्दोलनों ने पाश्चात्य वैज्ञानिक शिक्षा के महत्त्व को लोगों तक पंहुचाने का प्रयास किया जिसके फलस्वरूप व्यक्ति की स्वतंत्रता व समानता की अवधारणा का प्रसार हुआ। परन्तु, ये सुधार आन्दोलन मुख्यतः शहरी मध्यम व उच्च वर्ग तक ही सीमित रहे ;गांवों की आबादी व शहरी गरीबोँ तक नहीं पहुँच।

    इन आंदोलनों के नेतृत्त्वकर्त्ताओं ने ‘गौरवशाली अतीत’ को साबित करने किए लिये धर्मग्रंथों का सहारा लिया जिसने अप्रत्यक्षत: विभिन्न सम्प्रदायों के बीच विभाजन को बढ़ावा दिया।  इन आन्दोलनों में भारतीय संस्कृति की कुछ विशिष्टताओं को ही ज्यादा महत्त्व दिया गया , जिससे संस्कृति के अन्य क्षेत्र जैसे – स्थापत्य ,चित्रकला ,मूर्तिकला ,संगीत इत्यादि उपेक्षित हुये। हिन्दू समाज सुधारकों ने मध्यकालीन भारतीय इतिहास को बिलकुल भुला दिया जबकि मध्यकालीन इतिहास की अपनी अनेक गौरवशाली उपलब्धियां रही हैं तथा मुस्लिम सम्प्रदाय के लिये यह कालखंड विशेष महत्त्व रखता।

    हिन्दू समाज सुधारकों द्वारा प्राचीन संस्कृति के अतिशय गुणगान से समाज के वे वर्ग इन आन्दोलनों के विरुद्ध हो गए जो सदियों से विभिन्न प्रकार के शोषण व अत्याचार के शिकार रहे। अनेक निम्न जातियां इन आंदोलनों में सक्रिय नहीं हुईं । कई मुस्लिम संगठनों ने मुस्लिम समाज का पाश्चात्यीकरण करने के प्रयास को मुस्लिम सभ्यता व संस्कृति को नीचा दिखने का प्रयास माना । धार्मिक सुधारकों द्वारा केवल अपने धर्म की श्रेष्ठता स्थापित करने के प्रयास में देश के साम्प्रदायिक सौहार्द को धक्का लगा तथा समाज के विभिन्न वर्गों में भाईचारा कम हुआ।

    अंग्रेज़ों ने भी इस स्थिति का पूरा लाभ उठाते हुये राष्ट्रीय एकता को तोड़ने की पूरी कोशिश की और इस दिशा में वो  काफी हद तक कामयाब भी हुये ।इसलिए कहा जा सकता है कि सुधार आंदोलनों ने अप्रत्यक्षत: राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचाई। परन्तु,हमें सुधार आन्दोलनों के सकारात्मक पक्षों को नहीं भूलना चाहिये। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने,लोगों की चेतना को जागृत करने व उनके खोये हुये आत्मविश्वास को लौटाने में सुधार आन्दोलनों की भूमिका को कभी नकारा नहीं जा सकता।

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