19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से ही ‘प्रेस’ राष्ट्रवादियों के विचारों एवं उद्देश्यों को जनमानस तक पहुंचाने में सबसे उपयुक्त औजार साबित हुई। चर्चा कीजिये।
06 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासराष्ट्रीय आंदोलनों के प्रारंभिक चरण से ही भारतीयों को राजनीतिक मूल्यों से अवगत कराने, उनके मध्य शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने, राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रसार करने, जनमानस में उपनिवेशी शासन के विरूद्ध राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करने तथा जन-प्रदर्शन या भारतीयों को जुझारू राष्ट्रवादी कार्यप्रणाली से अवगत कराने में ‘प्रेस’ राष्ट्रवादियों का सबसे उपयुक्त औजार थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी शुरूआत से ही प्रेस को पूर्ण महत्त्व दिया तथा अपनी नीतियों एवं बैठकों में पारित किये गये प्रस्तावों को भारतीयों तक पहुँचाने में प्रेस का सहारा लिया।
उन वर्षों में हिन्दू, स्वदेश मित्र, द बंगाली, वॉयस ऑफ इंडिया, अमृत बाजार पत्रिका, इंडियन मिरर, केसरी, मराठा तथा हिंदुस्तान आदि समाचार-पत्रों का प्रकाशन कई निर्भीक व प्रसिद्ध पत्रकारों के संरक्षण में प्रारंभ हुआ। इन समाचार-पत्रों का मुख्य उद्देश्य धन कमाना या व्यवसाय स्थापित करना न होकर राष्ट्रीय व नागरिक सेवा की भावना थी। इनकी प्रसार संख्या काफी थी। इनकी पहुँच एवं प्रभाव सिर्फ शहरों व कस्बों तक सीमित नहीं था अपितु ये देश के दूरदराज के गाँवों तक पहुँचते थे, जहाँ पूरा का पूरा गाँव स्थानीय वाचनालयों (लाइब्रेरी) में इन समाचार-पत्रों में छपी खबरों को पढ़ता था एवं उस पर चर्चा करता था। इससे भारतीय राजनीतिक रूप से शिक्षित हुए तथा उनको राजनीतिक भागीदारी हेतु प्रोत्साहन भी मिला।
इन समाचार-पत्रों में सरकार की भेदभाव-पूर्ण एवं दमनकारी नीतियों की खुलकर आलोचना की जाती थी और जनता को विरोध के लिये प्रेरित किया जाता था। ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न कानूनों द्वारा प्रेस के दमन का प्रयास किया। सरकार ने समाचार-पत्रों को सरकारी नीति के पक्ष में लिखने हेतु प्रोत्साहित किया, लालच दिया जबकि जो समाचार-पत्र सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों की भर्त्सना करते थे, उनके प्रति शत्रुतापूर्ण नीति अपनाई, उनके संरक्षकों को डराया-धमकाया।
प्रेस की स्वतंत्रता राष्ट्रीय आंदोलन की एक प्रमुख जरूरत भी थी और राष्ट्रवादियों की माँग भी। जब-जब सरकार ने कोई दमनकारी कानून बनाया व लागू किया, तब-तब प्रेस के जरिये राष्ट्रवादियों ने सरकार की घोर आलोचना की। यही कारण था कि सरकार ने कई बार विभिन्न कानून लाकर प्रेस के कुचलने का प्रयास भी किया जैसे- देशी भाषा समाचार-पत्र अधिनियम, 1878 द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध। परन्तु, निर्भीक राष्ट्रवादी पत्रकार सरकार के प्रयासों से भयभीत हुए बिना अपने अभियान में लगे रहे। अतः यह कहना तर्कसंगत लगता है कि ‘प्रेस’ राष्ट्रवादियों के लिये उनके विचारों व उद्देश्यों को जनमानस तक पहुँचाने का एक उपयुक्त औजार थी।