- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- संस्कृति
- भारतीय समाज
-
प्रश्न :
18वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों तक अपनी विशेषताओं के कारण मजबूत विकसित रही भारतीय अर्थव्यवस्था बाद के दशकों में विभिन्न कारकों के दबाव में पिछड़ती चली गई। विवेचना कीजिये।
24 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
18वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक भारतीय अर्थव्यवस्था की आधार इकाई ग्राम ही थी,जो आत्मनिर्भर व स्वशासी थी तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यक सभी पदार्थों का उत्पादन कर लेती थी। इनका राज्य से संबंध केवल कर देने तक ही सीमित होता था। राज्य के शासक या वंश तो परिवर्तित होते रहते थे, किंतु ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था सदैव गतिशील रहती थी। नमक और लोहे के अतिरिक्त इन्हें बाहरी संसार से कुछ नहीं लेना होता था। मार्क्स ने इस ग्राम्य जीवन को एक बार ‘एशिया के समाजों की अपरिवर्तनशीलता’ की संज्ञा दी थी।
नगरों में हस्तशिल्प का स्तर बहुत विकसित हो चुका था तथा भारतीय माल की संसार की सभी मंडियों में मांग थी। ढाका, अहमदाबाद तथा मसूलीपट्टम का सूती कपड़ा, मुर्शिदाबाद, आगरा, लाहौर तथा गुजरात का रेशमी माल, कश्मीर, आगरा तथा लाहौर के ऊनी शाल, गालीचे, सोने-चाँदी के आभूषण, बर्तन, धातु का समान, हथियार, ढालें, इत्यादि की भारत में तथा बाहर बहुत मांग थी।
भारत ने अपनी एक बैंक-प्रणाली भी विकसित कर ली थी जिसमें निम्न स्तर पर सर्राफ और महाजन तथा उत्तम स्तर पर चेट्टी, नगर सेठ तथा जगत सेठ थे। हुण्डियों आदि का प्रचलन भी होने लगा था तथा इसे व्यापार में बहुत वृद्धि हो गई थी। व्यापार का संतुलन भी हमारे पक्ष में था और भारत सोने व चाँदी का घर कहा जाता था।
उस समय भारतीय व्यापार के विकास से यह लगता था कि भारत की अर्थव्यवस्था पूंजीवाद के विकास की अनुकूल स्थितियों के अनुरूप है। परंतु, समाज की अर्थव्यवस्था के सामाजिक बंधनों, सामंतशाही वर्ग के प्रसार (जो कृषकों की बचत के धन का दुरूपयोग करते थे), अभिजात वर्ग की संपत्ति का सरकार द्वारा जब्त करना (राजगामी संपत्ति अधिनियम- Law of Escheat) लोगों में बचत की भावना व प्रवृत्ति का अभाव होने के कारण तथा देश में राजनीतिक अस्थिरता की उपस्थिति ने उस अर्थव्यवस्था का विकास आधुनिक विधि से नहीं होने दिया। बाद के वर्षों में यूरोपीय कंपनियों विशेषतः ईस्ट इंडिया कंपनी ने अतिशय आर्थिक शोषण एवं प्रशासनिक नीतियों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया।
इस प्रकार उपरोक्त सभी कारकों के चलते एक मजबूत अर्थव्यवस्था विश्व व्यापार में पिछड़ती चली गई और भारतीय कृषक, हस्तशिल्प व व्यापारी बर्बाद होते गए।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print