19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुए किसान आंदोलनों का चरित्र, उद्देश्य व दृष्टिकोण ही इन आंदोलनों को राष्ट्रवादी आंदोलन से नहीं जोड़ पाया। विवेचना कीजिये।
उत्तर :
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में नील आंदोलन (1859-60), पाबना विद्रोह (1873-76) और दक्कन विद्रोह (1874) जैसे बड़े किसान आंदोलन हुए। इन किसान आंदोलनों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थी-
- इन आंदोलनों में किसानों ने अपनी मांगों व समस्याओं को लेकर सीधा लड़ना प्रारम्भ कर दिया था।
- किसानों के मुख्य दुश्मन विदेशी बागान मालिक, देशी जमींदार, महाजन व सूदखोर थे क्योंकि किसानों की मांगे मुख्यतया आर्थिक समस्याओं से ही संबंधित होती थी।
- इन आंदोलनों में निरंतरता एवं दीर्घकालीन संगठन का अभाव था।
- इन आंदोलनों का प्रसार क्षेत्र सीमित था।
- ये किसान आंदोलन विशिष्ट तथा सीमित उद्देश्यों एवं व्यक्तिगत समस्याओं से संबद्ध होते थे।
- इन आंदोलनों का उद्देश्य ‘अधीनस्थ व्यवस्था’ को समाप्त करना नहीं था अपितु ये किसानों की तात्कालिक समस्याओं से संबद्ध था।
- अब तक किसान अपने विधिक अधिकारों से परिचित हो गए थे तथा वे कानूनी तरीके से संघर्ष करने के पक्षधर थे।
- इन आंदोलनों का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह था कि इनमें उपनिवेशवाद के विरूद्ध आवाज नहीं उठायी गई।
इन आंदोलनों की दुर्बलताएँ जिनके कारण ये राष्ट्रवादी आंदोलन से नहीं जुड़ पाए-
- इन आंदोलनकर्त्ताओं में उपनिवेशवाद के चरित्र को समझने का अभाव था।
- इन किसानों में राष्ट्रवादी विचारधारा का अभाव था तथा इनके आंदोलनों में नए सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक कार्यक्रम ही सम्मिलित नहीं होते थे।
- इन संघर्षों का स्वरूप यद्यपि हिंसक था किंतु ये परम्परागत ढाँचों पर ही अवलम्बित थे।
- इन आंदोलन के नेतृत्व में सकारात्मक व राष्ट्रवादी दृष्टिकोण का अभाव था।
इस प्रकार उस दौर के किसान आंदोलन अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों, क्षेत्रवादी चरित्र तथा सीमित दृष्टिकोण के कारण खुद को राष्ट्रवादी आंदोलन से नहीं जोड़ पाए।