उन परिस्थितियों का उल्लेख करें जिनके कारण 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' आरंभ करना अपरिहार्य हो गया?
उत्तर :
‘क्रिप्स मिशन’ के वापस लौटने के उपरान्त गाँधी जी ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें अंग्रेजों से तुरन्त भारत छोड़ने तथा जापानी आक्रमण होने पर भारतीयों से अहिंसक असहयोग का आह्वान किया गया था। फिर, 8 अगस्त 1942 में, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की गवालिया टैंक, बम्बई में हुई बैठक में, ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पारित किया गया तथा घोषणा की गई कि-
- भारत में ब्रिटिश शासन को तुरन्त समाप्त किया जाये।
- स्वतंत्र भारत सभी प्रकार की फासीवादी एवं साम्राज्यवादी शक्तियों से स्वयं की रक्षा करेगा तथा अपनी अक्षुण्ता को बनाये रखेगा।
- अंग्रेजों की वापसी के पश्चात् कुछ समय के लिये अस्थायी सरकार बनायी जाएगी।
- ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध सविनय अवज्ञा जारी रहेगा।
- गाँधी जी इस संघर्ष के नेता रहेंगे।
1940 में गाँधी जी ने सीमित सत्याग्रह प्रारंभ करने का निश्चय किया था तथा यह तय किया था कि हर इलाके में कुछ हुए लोग व्यक्तिगत सत्याग्रह करेंगे। मई 1941 तक लगभग 25 हजार सत्याग्रहियों को सविनय अवज्ञा के लिये सरकार द्वारा दंडित किया जा चुका था। परन्तु, क्रिप्स मिशन की वापसी के पश्चात् ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई, जिनके कारण सीमित सत्याग्रह की जगह एक व्यापक जन-संघर्ष प्रारम्भ करना अपरिहार्य हो गया। वे परिस्थितियाँ निम्नलिखित थीं-
- संवैधानिक गतिरोध को हल करने में क्रिप्स मिशन की असफलता ने संवैधानिक विकास के मुद्दे पर ब्रिटेन के अपरिवर्तित रूख को उजागर कर दिया तथा यह बात स्पष्ट हो गयी कि भारतीयों की ज्यादा समय तक चुप्पी उनके भविष्य को ब्रिटेन के हाथों में सौंपने के समान होगी। इससे अंग्रेजों को भारतीयों से विचार-विमर्श किये बिना ही उनके भविष्य निर्धारण का अधिकार मिल जाएगा।
- मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि तथा चावल, नमक इत्यादि आवश्यक वस्तुओं के अभाव से सरकार के विरुद्ध जनता में तीव्र असंतोष था। सरकार के उड़ीसा व बंगाल की नावों को जापानियों द्वारा दुरूपयोग किये जाने के भय से जब्त कर लिया था तथा जापानी आक्रमण द्वारा भय से ब्रिटिश सरकार ने असम, बंगाल व उड़ीसा में अन्यायपूर्ण भू-नीति का सहारा लिया था, जिसके चलते स्थानीय लोग आक्रोशित थे।
- दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटेन की पराजय तथा शक्तिशाली ब्रिटेन के पतन ने भारतीयों में अपने असंतोष को व्यक्त करने का साहस दिया।
- ब्रिटिश प्रशासन की नस्लीय श्रेष्ठता साबित करने वाली हरकतों ने लोगों में काफी असंतोष फैला रखा था।
- राष्ट्रवादियों को आशंका थी कि विभिन्न कारणों से निराश व हताश भारतीय जनता कहीं जापानी आक्रमण का प्रतिरोध ही न करे, अतः जनता को संघर्ष के लिये तैयार करना आवश्यक है।
उपरोक्त सभी परिस्थितियों ने राष्ट्रवादियों को साम्राज्यवाद पर एक मजबूत अंतिम प्रहार करने के लिये प्रेरित किया, जिसकी परिणति ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के रूप में सामने आयी।