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प्रश्न :
प्रथम विश्वयुद्ध अपने परिणामों के साथ एक युग-प्रवर्त्तक घटना प्रमाणित हुआ क्योंकि इसने विश्व के मानचित्र पर यूरोपीय प्रभुत्व के समाप्त होने के युग को प्रारम्भ किया। विवेचना कीजिये।
05 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
प्रथम विश्वयुद्ध से पहले तक पूरे विश्व में यूरोपीय देशों की तूती बोलती थी। यूरोपीय देश सारे विश्व को अपने ईशारों पर नचाते थे और कोई देश उनके खिलाफ जाने का साहस नहीं कर पाता था। परंतु, प्रथम विश्वयुद्ध ने उस युग का आगाज किया जिसमें यूरोप की प्राधान्यता की समाप्ति आरंभ हुई। विश्वयुद्ध समाप्त होने के पश्चात् तो स्पष्ट तौर पर यूरोपीय पतन के लक्षण दृष्टिगोचर हुए। यथा-
(i) विश्वयुद्ध पश्चात् हुए पेरिस शांति सम्मेलन में एशिया, अफ्रीका व अमेरिका के राष्ट्र भी सम्मिलित हुए और सम्मेलन के निर्णयों में उनका प्रमुख हाथ था। जबकि विश्वयुद्ध से 20-25 वर्ष पहले इस तरह की घटना की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। पहले तो यूरोपीय नेता आपस में ही संपूर्ण विश्व के मामलों को तय कर लेते थे।
(ii) युद्धोत्तर काल में संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति कोई यूरोपीय राजनेता नहीं, बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति ‘विल्सन’ था, जिसकी खुशामद में विजित और विजेता दोनों पक्ष लगे थे। युद्ध के दौरान सभी सरकारों ने अमेरिका से ऋण लिया था। इस कारण अमेरिका की तुलना में यूरोप की आर्थिक स्थिति में स्पष्ट गिरावट आई। अमेरिका से कर्ज लेकर यूरोपीय राष्ट्रों ने अपने भविष्य को बंधक रख दिया, जिसके कारण वर्षों तक उन्हें अपने आयात से अधिक निर्यात करने की बाध्य होना पड़ा।
(iii) पेरिस शांति सम्मेलन ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की। यह 1815 ई. के यूरोपीय कन्सर्ट से भिन्न था क्योंकि इसके सदस्य राज्य केवल यूरोप के देश ही नहीं, वरन संसार भर के देश थे। युद्ध से पूर्व यूरोपीय शक्तियों के निर्णय को गैर-यूरोपीय देशों द्वारा कभी चुनौती नहीं दी गई थी। लेकिन, अब राष्ट्रसंघ की स्थापना के साथ उनकी नीति और आचरण को भी नियंत्रित किया जा सकता था।
(iv) यूरोप चार वर्षों तक युद्ध में फँसा रहा। इस बीच शेष दुनिया ने अपने औद्योगिकीकरण की गति बढ़ा दी। अमेरिका की उत्पादन क्षमता बहुत ही बढ़ गई। जापानियों ने एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों को अपना बाछाार बना लिया जहाँ पहले यूरोपीय देशों का एकाधिकार था।
(v) युद्ध के समय मित्र और सहयोगी राष्ट्रों ने बड़े-बड़े और लुभावने नारे लगाए थे। संसार को प्रजातंत्र के लिये सुरक्षित करने की बातें तथा ‘आत्मनिर्णय के सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया गया था। इससे पराधीन देशों में लोगों के मन में एक नयी आशा का संचार हुआ था और उनको उम्मीद थी कि युद्ध के पश्चात् उन्हें भी स्वशासन मिलेगा। लेकिन युद्ध खत्म होते ही साम्राज्यवादी राज्यों ने अपने उपनिवेशों के साथ वही पुराना रवैया अपनाना शुरू कर दिया। फलस्वरूप अब उपनिवेशों में साम्राज्यवादी शासन का सशक्त विरोध शुरू हो गया। विश्व पर यूरोपीय नियंत्रण के विरूद्ध किये जाने वाले सभी आंदोलनों की रूस द्वारा समर्थन मिलने के कारण विश्व पर यूरोपीय प्रभुत्व के युग का अंत दृष्टिगोचर होने लगा।इस प्रकार, प्रथम विश्वयुद्ध के उपरांत यूरोपीय प्रभुत्व की समाप्ति आरंभ हो गई थी और विश्व में सभी प्रकार के निर्णयों में उनकी सर्वोच्चता को चुनौती मिल चुकी थी।
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