वास्तव में ब्रिटिश हुकूमत के प्रति अत्यधिक रोष व असंतोष ही मुस्लिम लीग को कांग्रेस के समीप लाया और दोनों के मध्य ‘लखनऊ समझौता’ संपन्न हुआ। विवेचना कीजिये।
उत्तर :
वर्ष 1916 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लखनऊ में आयोजित किया गया था। इस अधिवेशन में गरमदल (अतिवादियों) का कांग्रेस में पुनः प्रवेश हुआ था। इस अधिवेशन की दूसरी सबसे अहम उपलब्धि थी- लखनऊ समझौता। इस अधिवेशन में कांग्रेस व मुस्लिम लीग एक-दूसरे के करीब आ गए तथा दोनों ने सरकार के समक्ष अपनी समान मांगे प्रस्तुत की। मुस्लिम लीग के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समीप आने के कई कारण थे-
- 1912-13 के बाल्कन युद्ध में ब्रिटेन ने तुर्की की सहायता से इनकार कर दिया। इस युद्ध के कारण यूरोप में तुर्की की शक्ति क्षीण हो गई तथा उसका सीमा क्षेत्र संकुचित हो गया। इस समय तुर्की के शासक का दावा था कि वह सभी मुसलमानों का ‘खलीफा’ है। भारतीय मुसलमानों की सहानुभूति तुर्की के साथ थी। ब्रिटेन द्वारा युद्ध में तुर्की को सहयोग न दिये जाने से भारतीय मुसलमान रुष्ट हो गए। परिणामस्वरूप ‘लीग’ ने कांग्रेस से सहयोग करने का निश्चय किया, जो ब्रिटेन के विरूद्ध स्वतंत्रता आंदोलन चला रही थी।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा अलीगढ़ में विश्वविद्यालय की स्थापना करने एवं उसे सरकारी सहायता देने से इनकार करने पर शिक्षित मुसलमान रूष्ट हो गए थे।
- बंगाल विभाजन को रद्द करने से उन मुसलमानों को घोर निराशा हुई जिन्होंने 1905 में इस विभाजन का जोरदार समर्थन किया था। मुस्लिम लीग के तरूण समर्थक धीरे-धीरे सशक्त राष्ट्रवादी राजनीति की ओर उन्मुख हो रहे थे तथा उन्होंने अलीगढ़ स्कूल के सिद्धांतों को उभारने का प्रयत्न किया। 1912 में लीग का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ। इस अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने निश्चय किया कि वह भारत में अनुकूल ‘स्वशासन’ की स्थापना में किसी अन्य दल का सहयोग कर सकता है, बशर्ते यह भारतीय मुसलमानों के हितों पर कुठाराघात न करे तथा उनके हित सुरक्षित बने रह सकें। इससे कांग्रेस व लीग दोनों की ‘स्वशासन’ की मांग समान हो गई, जिससे उन्हें पास आने में सहायता मिली।
- प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सरकार की दमनकारी नीतियों से युवा मुसलमानों में भय का वातावरण व्याप्त हो गया था। जहाँ मौलाना अबुल कलाम आजाद के पत्र ‘अल हिलाल’ तथा मोहम्मद अली के पत्र ‘कामरेड’ को सरकारी दमन का सामना करना पड़ा; वहीं दूसरी ओर अली बंधुओं, मौलाना आजाद तथा हसरत मोहानी को नजरबंद कर दिया गया। सरकार की इन नीतियों से युवा मुसलमानों विशेषकर लीग के युवा सदस्यों में साम्राज्यवाद विरोधी भावनाएँ जागृत हो गई और वे उपनिवेशी शासन को समूल नष्ट करने के अवसर तलाशने लगे।
उपरोक्त कारकों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व मुस्लिम लीग में एकीकरण को संभव बना दिया। कांग्रेस को भी यह समझौता सकारात्मक लगा क्योंकि एक तो उस समय युवा क्रांतिकारी आतंकवादियों में मुस्लिम लीग की अच्छी पकड़ थी और दूसरा यह कि लीग के समीप आने से कांग्रेस के साम्राज्यवाद विरोधी अभियान को और गति मिल गई। इस प्रकार, पारस्परिक हितों व उद्देश्यों ने दोनों को करीब आने में मदद की।