वर्साय की संधि ने यूरोप के राजनीतिक वातावरण को एकदम अशांत और तनावपूर्ण कर दिया और इसका परिणाम संसार को 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में भुगतना पड़ा। चर्चा कीजिये।
12 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास1919 ई. में जर्मनी असहाय था। उस समय चुपचाप आँखें बंद करकर वर्साय-संधि की शर्तों को मानने के सिवा उसके समक्ष कोई विकल्प नहीं था। परंतु, यह निश्चित था कि ऐसी कठोर और अपमानजनक संधि की शर्तों को कोई भी स्वाभिमानी राष्ट्र एक लंबे अरसे तक नहीं बर्दाश्त कर सकता था। यह बिल्कुल स्वाभाविक था कि भविष्य में जर्मनी फिर युद्ध द्वारा ही अपने अपमान को धोने का प्रयास करे। इस प्रकार, द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज आरंभ से ही वर्साय-संधि की शर्तों में विद्यमान थे।
जैसे-जैसे जर्मनी शक्ति का संचय करता गया, वह संधि की शर्तों का उल्लंघन करता गया। 1933-34 में जर्मनी की राजनीति में हिटलर के उत्कर्ष के बाद वर्साय की संधि की शर्तों को तोड़ना तो एक मामूली बात हो गई। निरस्त्रीकरण और क्षतिपूर्ति की व्यवस्थाओं पर हिटलर ने तत्काल हमला किया। फिर, उसने आक्रमण करके खोये हुए जर्मन भू-भागों को पुनः प्राप्त करने का सिलसिला प्रारंभ किया। 1935 ई. में उसने फौज भेजकर राइनलैण्ड पर अधिकार कर लिया। 1938 ई. के प्रारंभ में उसने आस्ट्रिया को जर्मनी के साथ मिलाकर वर्साय संधि की एक धारा को तोड़ा और उसी वर्ष सितंबर में जर्मन अल्पसंख्यकों को चेकोस्लोवाकिया से मुक्त कराने के लिये कदम उठाया तथा अंततः लगभग समूचे चेकोस्लोवाकिया को ही निगल लिया। फिर, हिटलर ने पोलिश गलियारे और डांछिांग के बंदरगाह की ओर ध्यान दिया। जब उसने वर्साय संधि द्वारा निर्मित पोलैण्ड से संबंधित व्यवस्थाओं को तोड़ने का यत्न किया तो इस बात पर द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया।
इन तथ्यों के आधार पर निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि 1919 ई. का पेरिस सम्मेलन-जिसने वर्साय संधि का प्रारूप तैयार किया-तत्कालीन राजनेतृत्व की एक महान असफलता थी। यह एक ऐसी संधि थी जिससे न तो विजेताओं को संतोष मिला और न ही विजितों को। वर्साय संधि की अन्यायपूर्ण व्यवस्थाओं को तोड़ने के लिये ही हिटलर ने घटनाओं की वहशृंखला प्रारंभ की, जिसके कारण द्वितीय विश्वयुद्ध का विस्फोट हुआ। इस प्रकार जैसे प्रथम विश्वयुद्ध को राष्ट्रपति विल्सन ने ‘युद्ध का अंत करने वाला युद्ध’ कहा था, उसी तरह वर्साय की संधि को ‘शांति का अंत करने वाली संधि’ कहा जाना अनुचित नहीं होगा।