सहिष्णुता का मूल्य भारतीय समाज में सदियों से समाहित रहा है और यह हमारी संस्कृति की एक मुख्य विशेषता भी रही है। क्या वर्तमान में इस ‘मूल्य’ का क्षरण हुआ है? भारतीय समाज में सहिष्णुता की उपस्थिति के कारणों का उल्लेख करते हुए इसके कथित ‘क्षरण’ के संबंध में अपना मत प्रकट करें।
14 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजभारत एक बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक व बहुधर्मी देश है। यहाँ के समाज का मूल मंत्र ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ है। इसी कारण, सदियों से जो भी आक्रमणकारी, व्यापारी, दास या समुदाय यहाँ आया, उसे यहाँ की सभ्यता ने अपने में समायोजित किया। सबको अपना ही परिवार समझने की भावना ने यहाँ ‘सहिष्णुता’ के मूल्य को गहराई से स्थापित कर दिया।
भारत में बौद्ध, जैन, हिन्दू और सिख धर्म के अनुयायी रहते हैं। इन धर्मों में ‘सहिष्णुता’ के तत्त्व को बहुत महत्त्व दिया गया है। हालाँकि देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न भाषाओं की उपस्थिति, भौतिक विभिन्नताएँ, संस्कृतियों में भिन्नता है लेकिन इनके बावजूद राष्ट्रवाद और दूसरी संस्कृतियों का सम्मान करने की भावना यहाँ सबको आपस में जोड़ती है और एक दूसरे के प्रति सहिष्णु भी बनाती है। भारत की भौगोलिक अवस्थिति भी ऐसी है कि यह पूर्व और पश्चिम को आपस में जोड़ता है और इसी कारण उनके आवागमन से उनकी संस्कृतियों के तत्त्वों को स्वयं के साथ समायोजित करता रहा है।
परंतु, वर्तमान में कुछ घटनाओं ने भारतीय समाज के ‘सहिष्णुता’ के आदर्श पर प्रश्न चिह्न लगाया है। यथा-
इन सब कारकों के फलस्वरूप यह प्रतीत होने लगता है कि अब भारतीय समाज में ‘सहिष्णुता’ का क्षरण होने लगा है। लेकिन, देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाली इन छिटपुट घटनाओं के आधार पर भारतीय समाज के एक मुख्य मूल्य के क्षरण का आरोप तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। भारतीय संविधान व कानून सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा करता है। भारतीय समाज आज भी शरणार्थियों और पीड़ितों की आगे बढ़कर सहायता करता है। इसलिये, महज कुछ असामाजिक गतिविधियों की रोशनी में भारतीय समाज की ‘सहिष्णुता’ पर प्रश्नचिह्न उठाया अनुचित ही कहा जाएगा।