भारतीय मृदा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करते हुए मृदा अपरदन के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर :
मृदा एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है जिसकी प्रकृति एवं उर्वरता, शस्य उत्पादकता एवं कृषि उत्पादन को निर्धारित करती है। गहरी उर्वर मृदा से संपन्न क्षेत्र में अधिक कृषि उत्पादन होता है जो घनी जनसंख्या का पोषण करता है, जबकि मृदा का छिछला आवरण विपन्न कृषि अर्थव्यवस्था को जन्म देता है।
भारतीय मृदा की विशेषताएँ-
- भारत में अनेक प्रकार की मृदाएँ पार्ईं जाती हैं जिसके कारण उनके भौतिक गुणों, रासायनिक संघटन, उत्पादकता स्तर आदि में काफी भिन्नता पाई जाती है।
- भारत में अधिकांशतः पुरानी और परिपक्व मृदाएँ पाईं जाती हैं जिनमें नाइट्रोजन, खनिज लवणों और जैव पदार्थों की कमी पाई जाती है।
- मैदानों और घाटियों में मृदा की मोटी परत पाई जाती है, पहाड़ों और पठारों पर इनका छिछला आवरण पाया जाता है।
- भारतीय मृदाएँ भारी मृदा अपरदन की समस्या से ग्रस्त है।
- उष्ण कटिबंधीय जलवायु और मौसमी वर्षा के कारण इन मृदाओं का आर्द्रता स्तर बनाए रखने के लिये सिंचाई की जरूरत पड़ती है।
- देश के कुछ क्षेत्र लवणता और क्षारीयता की समस्या से ग्रस्त है जिससे उपजाऊ मिट्टियों का ह्रास हो रहा है।
मृदा अपरदन के प्रभाव
- भारतीय मृदाओं में मृदा अपरदन की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। इसके निम्नलिखित प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहे हैं-
- ऊपरी उपजाऊ मृदा के आवरण में क्षति के कारण मृदा-उर्वरता और कृषि उत्पादकता घटती जाती है।
- आप्लावन और निक्षालन से मृदा के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
- भौम जल स्तर और मृदा-आर्द्रता में गिरावट देखी जाती है।
- वनस्पति के शुष्क हो जाने से मरूस्थल का प्रसार होने लगता है।
- मृदा अपरदन के कारण नदियों और नहरों के तल में गाद का जमाव हो जाता है।
- अपरदन के कारण वनस्पति आवरण नष्ट हो जाते हैं जिससे इमारती और जलावन लकड़ी की कमी होने लगती है तथा वन्य जीवन दुष्प्रभावित होता है।
चूँकि मृदा अपरदन भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्ट करता हैं अतः यह कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर खाद्य सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न करता है। इसलिये मृदा संरक्षण उपायों के माध्यम से इस अपरदन की रोकथाम आवश्यक है।