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प्रश्न :
चीन द्वारा पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में व्यापक निवेश करने के पीछे क्षेत्रीय व्यापार पर नियंत्रण बनाने की उसकी कोशिश के संदर्भ में भारत द्वारा हाल ही में चाबहार पोर्ट में निवेश से उसको एक बड़ी चुनौती मिलने के आसार हैं, जिसका वैश्विक राजनीति में एक गहरा महत्त्व है। चर्चा करें।
16 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा : - चीन द्वारा ग्वादर बंदरगाह में निवेश के निहितार्थ एवं भारत द्वारा चाबहार पोर्ट से उसको मिली चुनौती का उल्लेख।
- चाबहार बंदरगाह के सामरिक महत्त्व का भारत के संदर्भ में उल्लेख एवं वैश्विक राजनीति में इसका महत्त्व।
- भारत के मार्ग में आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ।
- निष्कर्ष।
चीन द्वारा अरब सागर में अवस्थित पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह (पाकिस्तान के सुदूर दक्षिण-पश्चिमी भाग में बलूचिस्तान प्रांत में अरब सागर के किनारे स्थित एक बंदरगाह नगर) के माध्यम से मध्य एशियाई तथा अफ्रीकी संसाधनों एवं बाज़ार तक नियंत्रण स्थापित करने तथा भारत को घेरने की पाकिस्तान-चीन गठजोड़ की नीति, भारत द्वारा ईरान के चाबहार पोर्ट में निवेश के परिणामस्वरूप असफल होती दिखाई दे रही है। भारत द्वारा उठाया गया यह कदम विश्व राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
चाबहार दक्षिण-पूर्व ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित एक बंदरगाह है। यह प्रथम विदेशी बंदरगाह है जहाँ भारत ने निवेश किया है। इसके ज़रिये भारत ने पाकिस्तान की सहायता के बिना ही अफगानिस्तान तक अपनी पहुँच बना ली है। चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत मध्य एशिया, उत्तरी अफ्रीका के संसाधनों एवं बाज़ार पर अपनी पकड़ मज़बूत करके यूरोप तक अपनी पैठ बना सकता है। इस स्थिति में चाबहार बंदरगाह को विकसित करके भारत को अफगानिस्तान और ईरान के लिये समुद्री रास्ते से व्यापार बढ़ाने का अवसर तो मिलेगा ही साथ ही उसे चीन-पाकिस्तान सामरिक गठजोड़ को भी जवाब देने का अवसर प्राप्त हो जाएगा। ऐसे में यदि भारत चाबहार से अपने रक्षा उद्देश्यों को जोड़ने में कामयाब हो जाता है तो वह ग्वादर में चीनी ताकत को कुछ हद तक कम कर सकता है या फिर उसका मुकाबला कर सकता है। इस प्रकार भारत-ईरान का यह गठजोड़ विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
चाबहार पर परिचालन आरंभ होना भारत के लिये इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसके साथ ही भारत ईरान एवं अफगानिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय परिवहन एवं पारगमन समझौता अमल में आ गया जिस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तेहरान में मई 2016 में हस्ताक्षर किये थे।
परंतु भारत की राह आसान नहीं होगी, क्योंकि पिछले वर्षों में पश्चिमी देशों के ईरान के खिलाफ होने पर भी चीन, ईरान के साथ था, जबकि भारत का रवैया उस दौरान लचर रहा। इसके अलावा, चीन का ईरान में निवेश और व्यापार भारत के मुकाबले काफी अधिक है। अतः भारत को इस क्षेत्र में काफी प्रयास करने होंगे। हाँ, इतना ज़रूर है कि चाबहार के ज़रिये पाकिस्तान की सहायता के बिना भारत अफगानिस्तान के लिये मार्ग बना सकता है। साथ ही चाबहार से ईरान के वर्तमान सड़क नेटवर्क को अफगानिस्तान के जरांज तक जोड़ा जा सकता है। व्यापारिक और कूटनीतिक दोनों ही दृष्टि से चाबहार का अपना महत्त्व है। गौरतलब है कि ईरान-इराक युद्ध के समय ईरानी सरकार ने इस बंदरगाह को अपने समुद्री संसाधनों को सुरक्षित रखने के लिये इस्तेमाल किया था।
इस तरह ईरान के ज़रिये अफगानिस्तान के साथ जुड़कर भारत पाकिस्तान को उसी तरह घेर सकता है जिस तरह से चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को घेर रहा है, लेकिन यह सब काम केवल इन समझौतों के बलबूते संभव नहीं हो पाएगा बल्कि उन्हें ज़मीनी हकीकत में बदलना होगा।
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