भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का कोई ऐसा पक्ष नहीं है, जिसका प्रतिबिंब अभिलेखों में नहीं मिलता, चर्चा कीजिये।
22 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिप्रस्तर, धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर लिखित राज्यादेश, स्मृति, प्रशस्ति आदि अभिलेख के अंतर्गत आते हैं।
जेम्स प्रिंसेप द्वारा अशोक के अभिलेखों को पढ़े जाने के बाद हज़ारों अभिलेखों को खोज कर प्राचीन भारतीय जीवन, संस्कृति, आर्थिक तथा राजनीतिक विषयों की जानकारी प्राप्त की गई। उत्तरमेरूर जैसे अभिलेखों से, जहाँ चोलकालीन ग्राम्य प्रशासन तथा कर व्यवस्था की, वहीं अशोक तथा गुप्तकालीन अभिलेखों प्रशस्तियों से तत्कालीन आर्थिक, प्रशासनिक, धार्मिक तथा विदेशी आक्रमणों तथा राजा की व्यक्तिगत उपलब्धियों की जानकारी मिलती है।
एक तरफ तो क्षतिग्रस्त होने तथा अपठनीय होने के कारण (हड़प्पाई अभिलेखों तथा कुछ मौर्य तथा गुप्त अभिलेख)
अभिलेखों का सही अर्थ नहीं निकला जा सका है। वहीं दूसरी तरफ जिसे आज हम राजनीतिक और आर्थिक इतिहास के रूप में महत्त्वपूर्ण मानते हैं, आवश्यक नहीं है कि वह अभिलेखों में अंकित किया ही गया हो, जैसे- खेती की दैनिक प्रणाली, आम जन-जीवन, समाज में स्त्रियों की स्थिति तथा रोजमर्रा की ज़िन्दगी तथा उनसे जुड़ी समस्यायें। क्योंकि अभिलेखों में प्रायः बड़े तथा विशेष अवसरों का ही उल्लेख मिलता है।इसके अतिरिक्त अभिलेख उस व्यक्ति विशेष के विचारों को भी प्रतिबिम्बित करते हैं जिसने उसे उत्कीर्ण कराया।
19वीं सदी में इतिहासकार राजाओं के इतिहास में रूचि रखते थे जबकि 20वीं सदी के मध्य से आर्थिक परिवर्तन तथा विभिन्न समुदायों का उदय तथा विकास जैसे विषय महत्त्वपूर्ण बन गए।
अतः स्पष्ट है कि अभिलेखों से प्राचीन भारतीय जन-जीवन, संस्कृति के विभिन्न पहलुओं की जानकारी तो मिलती है किंतु अब अभिलेखों में व्यक्त विचारों की समीक्षा अन्य विचारों के परिप्रेक्ष्य में करने की आवश्यकता है ताकि हम अपने अतीत के विषय में बेहतर व परिष्कृत ज्ञान प्राप्त कर सकें।