भारत में लवणीय मृदा क्षेत्रों की पहचान कीजिये। इन क्षेत्रों में लवणीकरण के कारणों का उल्लेख करते हुए इसके प्रभावी नियंत्रण हेतु उपाय सुझाएँ।
उत्तर :
भारत में लवणीय मृदा आमतौर पर शुष्क या अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है। केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI) के अनुसार भारत में 67.4 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि लवणता से प्रभावित है। इसमें गुजरात में 22.2 लाख हेक्टेयर उत्तर प्रदेश में 13.6 लाख और पश्चिम बंगाल में 4.4 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि लवणता की समस्या से ग्रसित हैं।
भारत में लवणता प्रभावित मृदा-क्षेत्र को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
- गुजरात और राजस्थान का शुष्क क्षेत्र।
- पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश का अर्द्धशुष्क जलोढ़ क्षेत्र।
- दक्षिण के राज्यों-कर्नाटक, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र के क्षेत्र।
- तटीय क्षेत्र-इसके अंतर्गत पश्चिम बंगाल, केरल, ओडिशा, अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह, आदि तटीय राज्यों के क्षेत्र सम्मिलित हैं।
लवणीकरण के कारण
- अत्यधिक रिसाव (Excessive seepage) और जल जमाव (water logging)- ये कारक प्रायः उच्च वर्षा, अत्यधिक जलप्लावन एवं नहरों के किनारे वाले क्षेत्रों में प्रभावी होते हैं।
- समुद्री जल का प्रवेश (Ingress of sea water)- ऐसी स्थिति चक्रवात या सुनामी के दौरान अधिक ऊँचाई वाली तरंगों के माध्यम से तटीय क्षेत्रों में देखने को मिलती है।
- दोषपूर्ण कृषि प्रणाली- इसके अंतर्गत निम्न गुणवत्ता वाले जल का प्रयोग, सोडियम सल्फेट (NaSO4) एवं सोडियम क्लोराइड (NaCl) का प्रयोग।
- उथले भौमजल स्तर से केशिकत्व क्रिया के कारण भी मृदा में लवण की वृद्धि होती है।
नियंत्रण के उपाय
- रिसाव व जल जमाव वाले क्षेत्रों में नालिका अस्तर (canal lining), अवरोधक नाले व जैव-निकास प्रणाली विकसित कर मृदा- लवणता को नियंत्रित किया जा सकता है।
- लवण-सहिष्णु किस्मों (Salt tolerant varieties) का प्रयोग कर लवणता के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- खेत-कुशल जल प्रबंधन (On-farm efficient water management), निक्षालन (Leaching) और वैकल्पिक भूमि उपयोग के तहत स्मार्ट कृषि के द्वारा मृदा लवणीकरण की समस्या पर लगाम लगाया जा सकता है।