कर्नाटक संगीत की विशेषताओं को बताते हुए एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी के योगदान को रेखांकित कीजिये।
उत्तर :
भारतीय शास्त्रीय संगीत को दो वर्गों में बाँटा गया है- हिन्दुस्तानी संगीत एवं कर्नाटक संगीत। इनमें हिन्दुस्तानी संगीत का विकास मुगल दरबार में मौजूद अरबी और फारसी संगीतकारों के साथ हुआ, जबकि कर्नाटक संगीत अपने मूल रूप में ही आगे बढ़ा।
कर्नाटक संगीत की विशेषताएँ
- कर्नाटक संगीत को स्थिर, रूढ़िबद्ध और कठोर माना जाता है क्योंकि इसमें हिन्दुस्तानी संगीत की भाँति नए प्रयोग व परिवर्तन की छूट नहीं है।
- कर्नाटक संगीत में 72 आधारिक राग माने गए हैं। इन सभी में सात सुर (सप्तसुर) होतें हैं। साथ ही सात ताल (सप्त ताल) कर्नाटक संगीत को लयबद्ध आधार प्रदान करते हैं।
- कर्नाटक संगीत में निबद्ध और अनिबद्ध दो तरह की विधाएँ प्रचलित हैं। निबद्ध शैली में संगीत सार्थक शब्दों और ताल से बंधा होता है, जबकि अनिबद्ध शैली में इस नियम का पालन नहीं होता है। निबद्ध और अनिबद्ध संगीत से संबंधित अनेक संगीत शैलियाँ हैं, उदाहरणार्थ कल्पिता संगीत और मनोधर्म संगीत अथवा संशोधित संगीत पुनः निबद्ध एवं अनिबद्ध को भी शुद्ध संगीत, कला संगीत आदि शीर्षकों में बाँटा गया है।
- कर्नाटक संगीत को प्रशिक्षुओं की सुविधा के लिये सरल से कठोर की ओर गीतम्, सुलादी, स्वराजाति, जातिस्वरम्, वर्णम्, कीर्तनम्, कृति आदि में क्रमशः बाँटा गया है।
- कर्नाटक संगीत में सुषिर वाद्य (बाँसुरी), तार वाद्य (वीणा) एवं ताल वाद्य (मृदंगम्) का प्रयोग किया जाता है।
एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी का योगदान
- कर्नाटक संगीत में एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी एक विश्व प्रसिद्ध नाम है जिन्होंने इसे भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रसिद्धि दिलाई।
- 1963 में एडिनबर्ग महोत्सव में, 1966 में संयुक्त राष्ट्र सभा में और विभिन्न देशों में होने वाले भारत महोत्सव में कर्नाटक संगीत के शास्त्रीय रूप को विश्वपटल पर स्थापित किया।
- कर्नाटक संगीत के ‘राग आलाप’ के प्रदर्शन में बहुत कम ही कलाकार उनके सामने ठहर पाते थे।
- ‘मीरा’ फिल्म में उनकी मधुर आवाज़ (बसो मेरे नैनन में नंदलाल) ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था जिससे कर्नाटक संगीत की ख्याति बढ़ी।