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प्रश्न :
वे कौन-सी परिस्थितियाँ थीं, जिन्होंने भारत में वामपंथी विचारधारा के विकास में सहायक तत्त्वों की भूमिका निभाई? एक आंदोलन के रूप में इसका विकास कैसे हुआ ?
09 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
दक्षिण और वाम शब्दों का प्रयोग पहली बार फ्राँसीसी क्रांति में किया गया था। राजा के समर्थकों को दक्षिणपंथी तथा उसके विरोधियों को वामपंथी कहा जाने लगा। कालांतर में समाजवाद और साम्यवाद के उत्थान के पश्चात वामपंथी शब्द का प्रयोग इनके लिये होने लगा।
भारत में वामपंथी विचारधारा, प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के कारण उभरी और राष्ट्रवादी के साथ संलग्न हो गई। ये परिस्थितियाँ निम्नलिखित थीं:-- प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात देश की आर्थिक स्थिति बहुत शोचनीय हो गई थी। दैनिक उपभोग की वस्तुओं के मूल्य बहुत अधिक बढ़ गए थे। साम्राज्यवाद तथा पूंजीवाद का घिनौना रूप देश के सामने था।
- मार्क्स के क्रांतिकारी विचारों से लोग प्रभावित हुए और उन्होंने देखा कि कैसे रूस में साम्यवादी सरकार अस्तित्व में आई। इन नवीन सामाजिक तथा आर्थिक विचारों ने बुद्धिजीवियों, राजनैतिक नेताओं, क्रांतिकारियों तथा श्रमिकों को काफी प्रभावित किया।
- शिक्षित मध्यम वर्ग का वह अंग जो अब अंग्रेजों की उदारवादी नीतियों में विश्वास खो चुका था, वह भी इस नवीन समाजवादी विचारधारा की ओर आकर्षित हो गया।
- कुछ अतिवादी, जो गाँधी जी के क्षीण तथा तरल सुधारवाद (weak and watery reformism) से असंतुष्ट थे तथा उनके अहिंसावाद को, अंग्रेज़ी साम्राज्य से संघर्ष के विरुद्ध रुकावट समझते थे, वे भी वामपंथी विचारधारा में स्वयं को सहज मानने लगे।
आंदोलन के रूप में वामपंथ की दो धाराएँ विकसित हुई- (अ) साम्यवाद, जो कि अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन के एक भाग के रूप में उभरा, जिसे रूस का अंतर्राष्ट्रीय साम्यवादी संगठन “कोमिन्टर्न” नियंत्रित करता था। (ब) कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट दल, जो भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का वामपंथी गुट था तथा लोकतांत्रिक समाजवाद को मानता था।
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