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प्रश्न :
गुप्त काल ब्राह्मण (हिंदू) धर्म के उत्थान का प्रतीक माना जाता है। इसके बावजूद इस काल में बौद्ध तथा जैन धर्म का अस्तित्व बना रहा। विश्लेषण करें।
12 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हिंदू धर्म के उत्थान की प्रक्रिया गुप्त साम्राज्य की स्थापना से पूर्व ही प्रारंभ हो गई थी और गुप्त काल में विकास का यह क्रम अपने चरम पर था। फिर भी इस दौरान बौद्ध और जैन धर्मों का अस्तित्व बना रहा और इनमें कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।बौद्ध धर्म-
- यद्यपि बौद्ध धर्म को गुप्त सम्राटों का राजकीय संरक्षण प्राप्त नहीं हुआ था, परंतु गुप्त राजाओं ने इस धर्म के प्रति सहिष्णुता रखी। सैद्धांतिक रूप से बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म का घोर विरोधी था, परंतु उपासना, कर्म और व्यवहार में वह ब्राह्मण धर्म के समीप आ गया था।
- गुप्त काल में प्रसिद्ध बौद्ध आचार्यों का आविर्भाव हुआ। आर्यदेव,असंग,वसुबंधु गुप्तकाल के ही विद्वान थे। इस समय महायान मत के अंतर्गत कई दार्शनिक विचारधाराएँ बनी और नवीन दार्शनिक संप्रदायों का प्रादुर्भाव हुआ। इनमें माध्यमिक और योगाचार संप्रदाय प्रमुख थे।
- चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के शासन काल के दौरान भारत आने वाले चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा वर्णन से हमें गुप्त साम्राज्य के साथ-साथ बौद्ध धर्म की तात्कालिक स्थिति की भी जानकारी मिलती है। उसके अनुसार गुप्त काल में बौद्ध धर्म अपने स्वाभाविक रूप में विकसित हो रहा था।
- भारतीय नगरों में इस समय मठ बने हुए थे, जिनमें बौद्ध ग्रंथों का अनुशीलन किया जाता था। इस समय कश्मीर, अफगानिस्तान और पंजाब बौद्ध धर्म के केंद्र थे, परंतु पूर्वी भारत के कई प्रसिद्ध गौरवशाली बौद्ध नगर जैसे- वैशाली, श्रावस्ती और कपिलवस्तु गुप्त काल में समृद्ध नहीं रह गए थे।
जैन धर्म-
- गुप्त काल में जैन धर्म मुख्य रूप से अपरिवर्तित ही रहा, परंतु इसमें भी मूर्ति निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। गुप्त काल में महावीर और अन्य तीर्थंकरों की खड़ी और पद्मासन में बैठी प्रतिमाओं का निर्माण हुआ।
- 453 ई. में वल्लभी में जैन सभा हुई, जिसके सभापति प्रसिद्ध जैन आचार्य क्षमाश्रमण थे। उत्तर व दक्षिण भारत में जैन ग्रंथों पर भाष्य व टीकाएँ लिखी गईं।
- फाह्यान ने जैन धर्म का अधिक उल्लेख नहीं किया है, परंतु मध्य वर्ग और व्यापारियों में इस धर्म का पर्याप्त प्रचार था। इस समय मथुरा और वल्लभी श्वेतांबर जैन धर्म के केंद्र थे। प्रसिद्ध नगरों में कई जैन मंदिर थे।
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