"प्रसादपर्यन्त का सिद्धांत" सिविल सेवकों के मामले में निरंकुश और अप्रतिबंधित नहीं है। संविधान उन्हें अपने कर्त्तव्यों को पूरा करने के क्रम में निष्पक्ष काम सुनिश्चित करने के लिये कुछ सुरक्षा के उपाय प्रदान करता है। हाल की घटनाओं की पृष्ठभूमि में कथन का विश्लेषण कीजिये।
21 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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"प्रसादपर्यन्त सिद्धांत" अंग्रेज़ी मूल का शब्द है और इसका अर्थ यह है कि एक सिविल सेवक राष्ट्रपति या राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर बना रहेगा। यह सार्वजनिक नीति पर आधारित है, क्योंकि सरकार अपने प्रत्येक सेवक से सार्वजनिक जीवन में शालीनता और नैतिकता के कुछ मानकों का पालन करने की उम्मीद रखती है। परन्तु अंग्रेज़ी कानून के विपरीत यह सिद्धांत पूरी तरह से भारत में नहीं अपनाया गया है और कुछ सुरक्षा उपाय सिविल सेवकों को सेवाओं के दौरान उनकी गरिमा, निष्पक्षता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिये प्रदान किये गए हैं, क्योंकि सिविल सेवक उनके (राष्ट्रपति या राज्यपाल) प्रसादपर्यन्त अपनी सेवाएँ धारण करते हैं और न की उनकी (राष्ट्रपति या राज्यपाल) दया पर्यन्त। यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी बिहार बनाम अब्दुल मजीद के केस में कहा है कि यह सिद्धांत भारत में सम्पूर्णता में नहीं अपनाया गया है।
हाल ही में हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कई मामलों में सरकार और सिविल सेवकों के बीच मतभेद देखा गया है। परिणामस्वरूप सिविल सेवकों को स्थानांतरण या निलंबन या कई अन्य तरीकों से परेशान किया जाता रहा है। ऐसे मामलों में इस सिद्धांत का पूर्ण अर्थों में प्रयोग सिविल सेवकों के मनोबल को और घटाता है।
इसलिये अनुच्छेद 311 के तहत भारत के संविधान में प्रावधान किया गया है कि किसी भी सिविल सेवक को उसकी नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा पदच्युत नहीं किया जाएगा या पद से नहीं हटाया जाएगा। यथापूर्वोक्त किसी सिविल सेवक को, ऐसी जाँच के पश्चात् ही जिसमें उसे अपने विरुद्ध आरोपों की सूचना दे दी गई है और उन आरोपों के संबंध में सुनवाई का उपयुक्त अवसर दे दिया गया है, पदच्युत किया जाएगा या पद से हटाया जाएगा या पंक्ति में अवनत किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
इसके अलावा, संविधान ने सरकार के सुचारु संचालन के संबंध में इन प्रावधानों को संतुलित करने के लिये कुछ अपवादों का भी प्रबन्ध किया है। इसलिये, जब तक अनुच्छेद 311 के अनिवार्य प्रावधानों को नहीं देखा जाएगा, तब तक किसी भी सिविल सेवक की सेवाओं को समाप्त नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा न्यायपालिका भी राष्ट्रपति और राज्यपाल को प्रसादपर्यन्त के सिद्धांत द्वारा प्रदत्त शक्ति के मनमाने उपयोग पर नियंत्रण और संतुलन करती है।