- फ़िल्टर करें :
- राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सामाजिक न्याय
-
प्रश्न :
यह सही है कि आपातकाल ने कुछ समय के लिये लोकतंत्र की आत्मा को तहस-नहस कर दिया लेकिन अनजाने में ही सही, इसने अपनी विरासत छोड़ते हुए सच्चे लोकतंत्र का निर्माण भी किया है। 1975 के आपातकाल के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
22 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- भारत में इमरजेंसी की शुरुआत एवं इसके अंतर्गत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की चर्चा करें।
- लोकतंत्र के बुनियादी मूल्य (आत्मा), जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता एवं सर्वोच्चता आदि पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिये।
- आपातकाल के बाद हुए संविधान संशोधन के महत्त्व को रेखांकित करते हुए 1976 के भारत के संविधान एवं 1978 के भारतीय संविधान की तुलना करें और ये स्पष्ट करें कि 1978 का संविधान अधिक उपयुक्त है।
भारत में 25 जून 1975 को इमरजेंसी लागू की गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बिना मंत्रिमंडल को विश्वास में लिये यह फैसला किया था। इसी रात को समाचार पत्रों पर सेंसर लगाया गया। कई प्रमुख विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया। सरकारी मशीनरी को अब संविधान या किसी कानून की परवाह किये बगैर केन्द्र सरकार के हाथों की कठपुतली बना दिया गया। इस समय भारत में सिर्फ नाममात्र का लोकतंत्र बचा था। यद्यपि सरकार जनता द्वारा चुनी गई थी, परंतु इस समय वह संवैधानिक संस्था की परवाह किये बगैर, अधिनायकवादी शासन की तरह व्यवहार कर रही थी।
नागरिकों के संवैधानिक अधिकार, मीडिया की स्वतंत्रता आदि के अभाव में भारतीय लोकतंत्र अपने मूल स्वरूप से अलग हो चुका था। सरकार ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप करते हुए संसदीय संप्रभुता को न्यायपालिका की स्वतंत्रता से ज्यादा महत्त्व दिया। यह संविधान के मूल ढाँचे के खिलाफ था। इसी दौरान, सरकार ने संविधान की उद्देशिका में समाजवाद एवं पंथनिरपेक्ष शब्द भी जोड़े। भारत के नागरिकों के लिये मूल कर्त्तव्य भी संविधान में जोड़े गए। कुल मिलाकर 42वीं संविधान संशोधन, संविधान का अब तक का सबसे बड़ा संशोधन था। इसके अतिरिक्त सरकार ने परिवार नियोजन से संबंधित कार्यक्रम भी शुरू किये। कई स्तरों पर इस कार्यक्रम को लागू करने में अलोकतांत्रिक तरीकों का उपयोग हुआ। मीडिया में सिर्फ सरकार के पक्ष की खबरें चलाने का दबाव लगातार जारी रहा। ये सिलसिला 1977 में, नए चुनावों की घोषणा के साथ ही खत्म हो गया।
आपातकाल के बाद श्री मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने। 42वें संविधान संशोधन के ऐसे प्रावधान, जो लोकतंत्र के मूलभूत आदर्शों के विरुद्ध थे, 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा बदल दिये गए। जैसे- प्रधानमंत्री द्वारा लिये जाने वाले प्रमुख फैसलों में कैबिनेट की सहमति की अनिवार्यता, न्यायपालिका की सर्वोच्चता आदि।
कुल मिलाकर देखा जाए तो 1975 की आपातकाल की घोषणा भारतीय लोकतंत्र का दुखद उदाहरण था, लेकिन इस आपातकाल ने संविधान के उन स्तंभों को बहुत मज़बूत भी किया, जिससे भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति दोबारा न हो सके। पिछले 40 साल का सफल लोकतंत्र इस बात की पुष्टि करता है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print