चीन में साम्यवाद के उदय के कारणों पर चर्चा करें। चीन की साम्यवादी क्रांति का विश्व राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
21 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासचीन में साम्यवाद का विकास विश्व की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। चीन में इसके उदय के निम्नलिखित कारण थे-
रूसी क्रांति का प्रभाव– पेरिस शांति सम्मलेन के पश्चात चीन के लोगों की यह धारणा बन गई कि बोल्शेविक विचारधारा के माध्यम से ही चीन का उद्धार संभव है। परिणामस्वरूप चीन में कई साम्यवादी संस्थाओं की स्थापना की गई और वहाँ संगठित साम्यवादी आंदोलन का आरंभ हुआ।
पश्चिमी शक्तियों के प्रति चीन में असंतोष- चीन की जनता चीन में विदेशियों के प्रभाव से बहुत असंतुष्ट थी। अपने विरोध को ऊर्जा देने के लिये उसे एक सशक्त और क्रांतिकारी दल की आवश्यकता थी। यह शक्ति और भावना उन्होंने साम्यवादियों में देखी।
चीन में आर्थिक विकास– साम्यवाद मुख्यतः एक आर्थिक विचार था। साम्यवाद का घोषित उद्देश्य वर्ग-संघर्ष को समाप्त करके इसके स्थान पर आर्थिक समानता स्थापित करना था। उस समय चीन में आर्थिक असमानता की अतिव्याप्ति ने साम्यवाद के उदय के लिये माहौल तैयार कर दिया।
शिक्षा का प्रसार– 19वीं सदी के अंत तक चीन में शिक्षा के कई केंद्र स्थापित हो चुके थे। शिक्षित जनता को भ्रमित नहीं किया जा सकता था। वह रूस में हो रही घटनाओं के प्रभावों को ग्रहण कर रही थी। इस प्रकार जनता साम्यवाद की ओर आकर्षित हुई।
माओ का नेतृत्व- इस समय चीन में माओत्से तुंग जैसे क्रांतिकारी नेता का मज़दूर और निम्न वर्ग पर व्यापक प्रभाव था। माओ में असाधारण सांगठनिक क्षमता थी। माओ के प्रयासों से ही चीन में संगठित साम्यवादी आंदोलन आरंभ हुआ।
चीन की साम्यवादी क्रांति का विश्व राजनीति पर प्रभाव –
जब माओ ने संपूर्ण चीन में एक सत्ता की घोषणा की तो साम्यवाद की इस विजय ने एशिया और अफ्रीका के कई देशों को साम्यवाद की ओर आकर्षित किया।
साम्यवाद की बढ़ती शक्ति के कारण पश्चिमों ताकतों और साम्यवादियों के मध्य एक प्रकार से शक्ति-संतुलन स्थापित हुआ।
चीन में साम्यवाद की स्थापना के बाद यह अनुमान लगाया गया कि चीन , सोवियत रूस का नेतृत्व स्वीकार करेगा, परंतु कुछ ही वर्षों में वह रूस का प्रतिद्वंद्वी बन गया।
अमेरिका ने जापान के लोकतंत्र को दृढ़ता प्रदान करने वाली नीति अपनाई, ताकि जापान अपने पड़ोसी साम्यवादी देशों के प्रभाव से बचा रहे।
इस तरह साम्यवाद की राह पर चलकर चीन ने एक उभरते शक्तिशाली राष्ट्र की छवि पेश करते हुए दुनिया को यह संदेश दिया कि अब विश्व राजनीति के मुद्दों पर निर्णय केवल वाशिंगटन और मॉस्को में नहीं होंगे, उनमें अब बीजिंग भी भागीदार होगा।