हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्त घोषित करने का निर्णय क्या वास्तव में भारत में गुणवत्तापरक शिक्षा को सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है? समालोचनात्मक परीक्षण करें।
24 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउच्च शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता के साथ संस्थानों की आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 62 उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्त घोषित कर दिया गया है। इन संस्थानों को अपने फैसले लेने के लिए अब यूजीसी पर निर्भर नहीं रहना होगा। सरकार का दावा तो यही है कि इन संस्थानों की शैक्षिक गुणवत्ता और इसे बनाए रखने में इनकी निरंतरता को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। माना गया है कि ये संस्थान अपने बूते अपनी दिशा खुद तय कर सकते हैं और स्वाभाविक रूप से ऐसे में उन्हें अपना खर्च भी खुद उठाने में सक्षम बना दिया जाना चाहिये। यानी नए फैसले के बाद ये अपनी दाखिला प्रक्रिया, फीस संरचना और पाठ्यक्रम भी खुद ही तय कर सकेंगे। नए पाठ्यक्रम और विभाग शुरू करने में इन्हें किसी का मुँह नहीं देखना होगा। ऑफ कैंपस गतिविधियों के संचालन, रिसर्च पार्क, कौशल विकास के नए पाठ्यक्रम तैयार करने, विदेशी छात्रों के प्रवेश से जुड़े नियम बनाने, शोध की सुविधाएँ बढ़ाने-घटाने का अधिकार भी इनके पास होगा। अपनी परीक्षाओं का मूल्यांकन भी ये खुद करेंगे। इन्हें विदेशी शिक्षक नियुक्त करने के साथ ही अपनी मर्जी का यानी इन्सेंटिव बेस्ड वेतन देने की भी छूट होगी। दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय के साथ समझौता करने, दूरस्थ शिक्षा के नए पाठ्यक्रम बनाने जैसे मामलों में भी इन पर कोई बंदिश नहीं रहेगी।
इस बात को सिरे से नज़रअंदाज़ करने का कोई कारण नहीं है कि शैक्षिक अराजकता और शिक्षा माफिया के फलने-फूलने के इस दौर में कहीं यह कदम हमारे गौरवशाली संस्थानों को भी व्यावसायिकता के उस दलदल में न धकेल दे, जहाँ से उन्हें उबार पाना मुश्किल हो जाए। ऐसे समय में, जब निजी स्कूल-कॉलेजों की आर्थिक मनमानी व निरंकुशता की बहस लगातार तेज़ हो रही हो, माना जा रहा हो कि इनकी मनमानी ने शिक्षा को आम आदमी से दूर कर दिया है, यह कदम कहीं नया खतरा बनकर सामने न आ जाए। यह आशंका अनायास तो नहीं है कि अपने संसाधन खुद जुटाने का अधिकार देकर स्वायत्तता देने वाला यह फैसला भारी फीस वृद्धि और शैक्षिक मनमानी के रूप में बोझ न बन जाए। खतरा यह भी है कि जिस तरह निजी कॉलेजों की मनमानी के कारण हाशिये का समाज उच्च शिक्षा से दूर होता गया है, वही हाल जेएनयू, बीएचयू और एएमयू जैसी संस्थाओं का भी न हो जाए, जहाँ से आम भारतीय बच्चे भी उच्च शिक्षा प्राप्त करके लंबी उड़ान भरते रहे हैं।