भारत-इजराइल के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने में कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ विद्यमान हैं? टिप्पणी करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- भारत-इजराइल के संबंधों की पृष्ठभूमि।
- भारत-इजराइल के बीच सकारात्मक पक्ष।
- भारत-इजराइल संबंधों को मज़बूत बनाने के मार्ग में मौजूद चुनौतियाँ।
- निष्कर्ष।
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भारत-इजराइल संबंध, भारतीय लोकतंत्र तथा इजराइल के मध्य द्विपक्षीय संबंधों को दर्शाता है। 1992 तक भारत तथा इजराइल के मध्य किसी प्रकार के संबंध नहीं रहे। इसके मुख्यतः दो कारण थे- भारत गुटनिरपेक्ष था जो कि पूर्व सोवियत संघ का समर्थक था तथा दूसरे गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की तरह इजराइल को मान्यता नहीं देता था। दूसरा मुख्य कारण, भारत फिलीस्तीन की आजादी का समर्थक रहा।
भारत-इजराइल के बीच सकारात्मक पक्ष:
- रक्षा खरीद समझौते के अंतर्गत इजराइल के मध्य द्विपक्षीय संबंधों का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। इजराइल को ड्रिप सिंचाई, बागवानी, नर्सरी प्रबंधन, सूक्ष्म सिंचाई एवं कृषि प्रबंधन के मामले में विशेषज्ञता हासिल है।
- इजराइल में भारत के खनिजों एवं रत्नों आदि की भारी मांग है इससे भारतीय रत्न उद्योग को अहम लाभ प्राप्त हो सकता है।
- तकनीकी दक्षता एवं विशेषज्ञता के मामले में इजराइल काफी आगे है। इस तकनीकी दक्षता एवं विशेषज्ञता का लाभ भारत प्राप्त कर सकता है।
भारत-इजराइल संबंधों को मज़बूत बनाने के मार्ग में मौजूद चुनौतियाँ:
- इजराइल के साथ भारत की निकटता से खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। जिससे खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों के हित विपरीत रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
- इजराइल एक यहूदी राष्ट्र है अतः यदि भारत के द्वारा इजराइल से संबंध मजबूत बनाए जाते हैं तो भारत के मुस्लिम वर्ग के साथ-साथ अन्य अरब मुस्लिम देशों के साथ भी भारत के संबंध खराब हो सकते हैं।
- पश्चिम एशिया में भारत और ईरान के बीच अत्यधिक मित्रतापूर्ण संबंध हैं, जबकि इजराइल और ईरान परस्पर शत्रु हैं और ईरान ने अभी भी इजराइल को मान्यता प्रदान नहीं की है। अतः भारत-इजराइल के संबंध ईरान से प्रभावित हो रहे हैं।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि भारत और इजराइल के मध्य चुनौतियाँ तो हैं लेकिन इसे द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूती प्रदान करके और बेहतर किया जा सकता है। साथ ही, इन चुनौतियों का कूटनीतिक समाधान भी किया जा सकता है।