यह कहना कहाँ तक उचित होगा कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) विकसित देशों को विकासशील देशों के साथ व्यापारिक संबंधों में वरीयता प्रदान करता है। अपने उत्तर के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करें।
27 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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गैट के उरुग्वे दौर (1986-93) ने विश्व व्यापार संगठन को जन्म दिया। गैट के सदस्यों ने मोरक्को में अप्रैल 1994 के उरुग्वे दौर में विश्व व्यापार संगठन नामक एक नए संगठन की स्थापना के लिये समझौते पर हस्ताक्षर किये।
विश्व व्यापार संगठन बहुपक्षीय व्यापारिक समझौतों और उनके उद्देश्यों के क्रियान्वयन, प्रशासन और संचालन में मदद करता है। यह संगठन अपने विभिन्न समझौतों में शामिल मामलों में बहुपक्षीय व्यापारिक संबंधों पर चर्चा के लिये मंच प्रदान करता है व एकीकृत विवाद निपटारे की व्यवस्था का भी प्रशासन संभालता है जो कि इस संगठन के सदस्यों के अधिकारों व कर्त्तव्यों के संरक्षण हेतु बहुपक्षीय व्यापारिक व्यवस्था को सुरक्षित बनाए रखने के लिये एक केंद्रीय तत्त्व है।
विश्व व्यापार संगठन में विकासशील देशों द्वारा अपनाई गई समझौतावादी स्थिति सीधी और दृढ़ नहीं है। यह विकसित देशों के साथ व्यापारिक संबंधों में उनके हितों को संरक्षित करने का अवसर देता है। वर्तमान समय में विश्व व्यापार संगठन को विश्व बाज़ार व आर्थिक प्रक्रियाओं में विकसित देशों के वर्चस्व को बनाए रखने और सभी विकासशील देशों की स्थिति को उपेक्षित व दुर्बल बनाने के यंत्र के रूप में देखा जाता है। विश्व व्यापार संगठन के कर्त्ताधर्ता (विकसित देश) व्यापार संबंधी मामलों, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकारों, श्रम व पर्यावरणीय मानकों में अपना लाभ सुनिश्चित करने के लिये विकासशील देशों पर दबाव डाल रहे हैं।
अनेक विकासशील देशों ने तब बौद्धिक संपदा अधिकारों, निवेश उपायों तथा सेवाओं में व्यापार से संबंधित समझौते को अपनाने से इनकार कर दिया था जब प्रशुल्क एवं व्यापार को लेकर सामान्य समझौते पर उरुग्वे दौर की वार्ता प्रारंभ हुई। हालाँकि इस दौर के मध्य में विकसित देशों ने अपने प्रभावों व राजनीतिक दबावों से विकासशील देशों को इन मामलों पर समझौते के लिये तैयार कर लिया। इस प्रकार विकासशील देशों की स्थिति कमजोर हो गई और एक अंतर्राष्ट्रीय संधि के तहत विकसित देशों को अपना नेटवर्क स्थापित करने का मौका मिल गया। नए समझौते में आर्थिक प्रक्रियाओं व सामाजिक संबंधों से संबंधित मामलों व प्राधिकरण को लाया गया जिन्हें प्रभुत्वपूर्ण देशों के विशिष्ट आधिपत्य में शामिल किया जाना था। इसे वैश्वीकरण प्रक्रिया (Globalisation Process) का नाम दिया गया। वैश्वीकरण के विस्तार से स्वायत्त व्यावसायिक उद्यम उलझ रहे है।। स्वदेशी, छोटी कंपनियाँ, बहुराष्ट्रीय निगम कंपनियों के सामने टिक नहीं पा रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जुड़ने के अलावा विकासशील देशों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है।
विश्व व्यापार संगठन के तत्त्वाधान में जो व्यवस्थाएँ थीं वे समानता के सिद्धांत से रहित थीं। यहाँ तक कि वैश्विक व्यापार संबंधी मामलों में भी समानता का सिद्धांत नहीं अपनाया गया। विश्व व्यापार संगठन के नियमों और विनियमों के अंतर्गत विकसित देशों के बीच बहुराष्ट्रीय कंपनियों की प्रतियोगिता और यहाँ तक कि व्यापारिक युद्धों को भी नियंत्रित नहीं किया गया। भारत और अन्य विकासशील देशों की सरकारों ने चाहे दबाव में आकर विश्व व्यापार संगठन के निर्माण के लिये संधि पर हस्ताक्षर किये हों पर वे अपनी प्रभुत्व संपन्न स्थिति का दावा करते हैं। विश्व व्यापार संगठन से संबंधित मामलों पर ध्यान केंद्रित करने तथा राष्ट्रीय हितों में विवेकपूर्ण प्रतिक्रियाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की अनिवार्य आवश्यकता है। विकासशील देशों को विदेशी निवेशकों और ऋणदाताओं के आगे झुकने तथा उनकी अनुचित शर्तों को मानने की ज़रूरत नहीं है।