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प्रश्न :
मुगलकाल में धार्मिक विचारों की मुख्य प्रवृत्तियाँ क्या थीं? उनसे भावनात्मक एकीकरण की प्रक्रिया किस प्रकार प्रभावित हुई?
29 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
बाबर द्वारा पानीपत की विजय के पश्चात् उसने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। इस काल में निम्नलिखित धार्मिक प्रवृत्तियाँ प्रचलित थीं-
- बाबर एक सुन्नी मुसलमान था लेकिन उसने अपनी धार्मिक मान्यताओं को कभी भी अपनी जनता पर नहीं थोपा और धार्मिक सहिष्णु ही बना रहा।
- हुमायूँ भी अपने पिता की तरह धार्मिक सहिष्णु ही बना रहा, अंतर केवल इतना था कि जहाँ बाबर स्वयं को सुन्नी कहता था, वहीं हुमायूँ ने खुद को शिया संप्रदाय से संबद्ध बताया।
- हुमायूँ के बाद अकबर ने गद्दी संभाली, यह सभी मुगल शासकों में धार्मिक से सबसे अधिक सहिष्णु था। इनकी धार्मिक सहिष्णुता ने मुगल साम्राज्य को शांति और समृद्धि की नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। अकबर ने धार्मिक एकता को स्थापित करने के लिये ‘तौहीद-ए-इलाही’ की स्थापना की।
- हालाँकि उत्तरवर्ती मुगलकाल में आंशिक रूप से कुछ घटनाओं से मुगलकाल की सहिष्णुता की प्रवृत्तियों को प्रश्नगत भी किया है।
- इन धार्मिक प्रवृत्तियों के साथ-साथ सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में भक्ति आंदोलन भी जोरो पर चल रहा था। इसके अतिरिक्त पंजाब में सिख धर्म और महाराष्ट्र में महाराष्ट्र धर्म का विकास भी इसी काल में हुआ। सिखों द्वारा ध्यान और विद्या की परंपरा को जारी रखा गया जबकि महाराष्ट्र में तुकाराम के नेतृत्व में विष्णु के विठोवा रूप की उपासना लोकप्रिय हुई।
भावनात्मक एकीकरण की प्रक्रिया पर प्रभाव
मुगलकाल में भावनात्मक एकीकरण की प्रक्रिया उसी सीमा तक प्रभावित हुई जिस सीमा तक वह राजगद्दी हथियाने या व्यक्तिगत संघर्षो तक सीमित रहा। जहाँगीर द्वारा सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव की गिरफ्तारी ने मुगलों और सिखों के बीच संघर्ष को बढ़ाया। ध्यातव्य है कि जहाँगीर का आरोप था कि उसने खुसरो के विद्रोह में पैसे और प्रार्थना से उसकी मदद की थी। सिख गुरु हरगोविंद से भी जहाँगीर का मिलाजुला संबंध रहा। इस तरह ये टकराव मामूली प्रकृति के ही थे जिसने कभी भी सांप्रदायिक स्वरूप नहीं धारण किया।यद्यपि शाहजहाँ ने अपने शासनकाल में मंदिरों को तोड़कर रूढ़िवादिता का परिचय दिया, फिर भी उसका दृष्टिकोण संकीर्ण नहीं था। वह अपने शासन के अंतिम समय में अपने ज्येष्ठ पुत्र दारा से काफी प्रभावित हुआ, जिसने काशी के पंडितों की सहायता से गीता का फारसी अनुवाद कराया।
औरंगज़ेब के शासनकाल में रुढ़िवादी प्रवृत्ति और संकीर्ण दृष्टिकोण की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई फिर भी यह प्रभाव राजनीतिक लड़ाइयों तक ही सीमित रही और अंततः उदार विचारधारों ने अपना प्रभाव पुनः जमाया।
इस तरह यह कहा जा सकता है कि मुगलकाल में धार्मिक-वैचारिक भिन्नता के वाबजूद भावनात्मक एकीकरण की प्रक्रिया पूर्णतः बाधित नहीं हुई।To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
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