भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब सत्य को खोजने की बजाय व्यावसायिक हितों से निर्देश प्राप्त कर रहा है। उपर्युक्त कथन का ‘पेड-न्यूज़’ की पृष्ठभूमि में आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये तथा जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के संबंध में अपने सुझाव भी दीजिये।
29 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया लोगों के विचारों को प्रभावित करने या परिवर्तित करने में अहम भूमिका निभाता है। इसकी भूमिका के अंतर्गत न केवल राष्ट्र के समक्ष उपस्थित समस्याओं का समाधान खोजना शामिल है, बल्कि लोगों को शिक्षित तथा सूचित भी करना है ताकि लोगों में समालोचनात्मक जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके। परंतु विगत समय में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं, जो यह बताता है कि उनका झुकाव सत्य की खोज के बजाय वाणिज्यिक हितों की ओर अधिक है।
आँकड़े यह दर्शाते हैं कि अधिकतर राजनीतिक दलों के कुल बजट का लगभग 40 प्रतिशत मीडिया संबंधी खर्चों के लिये आवंटित होता है। चुनावों में प्रयुक्त होने वाला धन बल, शराब तथा पेड न्यूज़ की अधिकता चिंता का विषय है।
भारतीय प्रेस परिषद के अनुसार, ऐसी खबरें जो प्रिंट या इलेक्ट्रॅानिक मीडिया में नकद या अन्य लाभ के बदले में प्रसारित किये जा रहे हों पेड न्यूज़ कहलाते हैं। हालाँकि यह साबित करना अत्यंत कठिन कार्य है कि किसी चैनल पर दिखाई गई विशेष खबर या समाचारपत्र में छपी न्यूज़, पेड न्यूज़ है।
पेड न्यूज़ के मामलों में वृद्धि होने का प्रमुख कारणः भारत में अधिकतर मीडिया समूह कॉरपोरेट के स्वामित्व वाले हैं तथा केवल लाभ के लिये कार्य करते हैं। पत्रकारों की कम सैलरी तथा जल्दी मशहूर होने की चाहत भी इसका एक कारण है।
यद्यपि भारत में मास-मीडिया में भ्रष्टाचार मीडिया जितना ही पुराना है, परंतु हाल के वर्षों में यह अधिक संस्थागत एवं संगठित हो गया है, जहाँ समाचारपत्र और टी.वी. चैनल किसी विशिष्ट व्यक्ति, कॉरपोरेट इकाई, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों इत्यादि के पक्ष में धन लेकर सूचनाएँ प्रकाशित या प्रसारित करते हैं। विगत कुछ वर्षों में इसने चुनाव लड़ रहे प्रत्यार्शियों की रिपोर्टिंग करके एक नया आयाम हासिल किया है।
समस्याएँ: इससे पाठक को गलत सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी अपने चुनाव खर्च में इसे शामिल नहीं करते हैं, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत लागू चुनाव नियम संहिता, 1961 का उल्लंघन है। संबंधित समाचारपत्र तथा न्यूज़ चैनल इस आय को अपने बैलेंस शीट में नहीं दर्शाते हैं, अतः वे कंपनी अधिनियम, 1656 और आयकर अधिनियम, 1961 दोनों का उल्लंघन करते हैं।
परिणामः इन कार्यों से राजनीति में धन बल का प्रभाव बढ़ता है, जो कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करता है। इससे मीडिया की विश्वसनीयता खत्म हो जाती है तथा लंबे समय में यह मीडिया के लक्ष्यों के लिये नुकसानदायक हो सकता है।
सुझावः
♦ अर्द्ध न्यायिक दर्जा प्राप्त होने के बावजूद, भारतीय प्रेस परिषद के पास सीमित शक्तियाँ हैं। यह कदाचार में लिप्त व्यक्तियों या इकाइयों की निंदा कर सकती है या चेतावनी दे सकती है, परंतु दंडित नहीं कर सकता है। प्रिंट मीडिया इसके अभिमत के दायरे से बाहर है।
♦ प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के अनुभाग 15(4) को संशोधित करने का प्रस्ताव, जिससे कि इसके निर्देश सरकारी प्राधिकरणों पर बाध्यकारी हों।
♦ मीडिया संगठनों में लोकपाल की नियुक्ति।
♦ सिविल सोसाइटी द्वारा निगरानी भी इस समस्या से निपटने में मदद कर सकती है।
♦ पार्टी लाइन से हटकर कई राजनेताओं ने जनप्रतिनिधित्व अधिकार की धारा 123 में संशोधन करके पेड न्यूज़ के लिये धन के आदान-प्रदान को भ्रष्ट आचरण या ‘चुनावी कदाचार’ घोषित करने की मांग की है।
♦सरकार को संपादक/पत्रकार की स्वतंत्रता तथा वेतन संबंधी स्थिति की समय-समय पर समीक्षा करनी चाहिये।
♦कठोर दंड प्रावधानों की भी आवश्यकता है।
हाल ही में चुनाव आयोग ने प्रचार सामग्री के साथ-साथ पेड न्यूज़ को चुनावी अपराध घोषित करने का प्रस्ताव रखा है। चुनाव आयोग का ऐसा मानना है कि इस कदम से दोषी प्रत्याशियों के विरुद्ध निर्वाचन याचिका के तहत कार्रवाई की जा सकेगी। हालाँकि यह प्रस्ताव अभी सरकार के पास लंबित है। अगर अब यह विधि मंत्रालय के ऊपर निर्भर करता है कि वह पेड न्यूज़ को चुनावी अपराध घोषित करने के लिये साहसिक कदम उठाता है या नहीं। यद्यपि, अनुच्छेद 19 ए मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है, परंतु मीडिया को भी अपने कार्यों एवं कर्तव्यों की समझ होनी चाहिये। मीडिया की शक्ति असीम है। यदि इसका सकारात्मक उपयोग हुआ तो यह समाज में आमूलचूल परिवर्तन ला सकता है।