मैंगनीज़ के उपयोगों का उल्लेख करते हुए इसके वैश्विक वितरण पर प्रकाश डालें। भारत के मैंगनीज़ निर्यात में कमी आने के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- मैंगनीज़ के विभिन्न उपयोगों का विवरण दें।
- मैंगनीज़ के भारत के साथ-साथ-पूरे विश्व में वितरण को बताएँ।
- भारत के मैंगनीज़ निर्यात में हुई कमी के कारणों का उल्लेख करें।
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मैंगनीज़ एक महत्त्वपूर्ण खनिज है, जिसका ज़्यादातर प्रयोग धात्विक उद्योगों में किया जाता है। लौह-इस्पात उद्योगों के लिये मैंगनीज़ एक आवश्यक अवयव है। मैंगनीज़ के उपयोग से बनी इस्पात मज़बूत होती है, इसलिये इस्पात का प्रयोग भारी मशीनों व उपकरणों के निर्माण में किया जाता है। इसके अलावा मैंगनीज़ का प्रयोग रसायन उद्योग में जैसे-पेस्टीसाइड्स, ब्लीचिंग पाउडर, पेंट-उद्योग, शुष्क-बैटरी तथा चीनी मिट्टी के बर्तनों के निर्माण में किया जाता है।
मैंगनीज़ का वैश्विक वितरण-
- चीन विश्व में मैंगनीज़ का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। विश्व का लगभग 37% मैंगनीज़ चीन उत्पादित करता है।
- अफ्रीकी महाद्वीप में दक्षिण अफ्रीका के पोस्टमासबर्ग,कुसगर्सडोप व सरेस नामक स्थानों पर मैंगनीज़ के भंडार हैं तथा गैबोन में फ्रेंकविले के निकट मोआंडा का मैंगनीज़ भंडार विश्व के सबसे बड़े मैंगनीज़ भंडारों में गिना जाता है।
- ब्राज़ील के मेनासगेरास में उत्तम श्रेणी का मैंगनीज़ पाया जाता है। यहाँ ओरो प्रेटो एक महत्त्वपूर्ण खनन केंद्र है। अमेज़न नदी के पास अमापा क्षेत्र में भी मैंगनीज़ पाया जाता है।
- ऑस्ट्रेलिया में उत्तर में कारपेंट्रिया की खाड़ी व पश्चिम में ब्रूस माउंटेन के पास का भाग प्रमुख मैंगनीज़ उत्पादक प्रदेश है।
- यूक्रेन यूरोप में मैंगनीज़ का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ निकोपोल नामक जगह में मैंगनीज़ का उत्पादन होता है।
- विश्व के बड़े मैंगनीज़ भंडारों में भारत के मैंगनीज़ भंडार भी गिने जाते हैं। भारत में ओडिशा में कालाहांडी,क्योंझर, ढेंकानाल, महाराष्ट्र में नागपुर व भंडारा ज़िले, मध्य प्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा, कर्नाटक में सदरहल्ली, शिमोगा आदि प्रमुख मैंगनीज़ उत्पादक क्षेत्र हैं।
भारत मैंगनीज़ का एक प्रमुख निर्यातक देश रहा है। 1970 तक भारत से मैंगनीज़ का काफी निर्यात किया जाता था, परंतु उसके बाद धीरे-धीरे मैंगनीज़ निर्यात में कमी आती गई। इसके पीछे निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
- समय के साथ भारत के प्रमाणित मैंगनीज़ भंडारों में कमी आई, जिसने मैंगनीज़ निर्यात को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।
- भारत में बढ़े औद्योगीकरण से भारतीय लौह-इस्पात उद्योग में उन्नति हुई एवं भारत में उत्पादित मैंगनीज़ का इस्तेमाल घरेलू स्तर पर ही इस्पात निर्माण में कच्चे माल के रूप में किया जाने लगा।
- 1971 के बाद से 35% से भी कम धातु वाले खराब गुणवत्ता के अयस्क का ही निर्यात किया जाता रहा है, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इस अयस्क की मांग कम है।
- भारतीय मैंगनीज़ को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में ब्राज़ील, गेबोन, घाना आदि के बेहतर गुणवत्ता वाले मैंगनीज़ से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है।