• प्रश्न :

    संविधान संसद को शक्तियाँ और उन्मुक्तियाँ प्रदान करता है तथा संसद संविधान में संशोधन कर सकती है। इस कथन को पृष्ठभूमि में रखते हुए क्या आप सोचते हैं कि संसद के कामकाज के नियंत्रण तथा इसे सुगम बनाने के लिये एक निगरानी आयोग की आवश्यकता समय की मांग है?

    03 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • सर्वप्रथम संसद के अधिकारों, उन्मुक्तियों तथा संविधान संशोधन की शक्तियों को लिखें।
    • संसदीय कार्यों को नियंत्रित करने तथा अधिक सुविधाजनक बनाने के लिये निगरानी आयोग के गठन की व्यवहार्यता का परीक्षण करें।
    • अपने विचार के पक्ष में समुचित तर्क दें तथा संतुलित दृष्टिकोण के साथ उत्तर का निष्कर्ष लिखें।

    भारत के संविधान में अनुच्छेद 105 के अंतर्गत ‘विशेषाधिकार एवं उन्मुक्ति’ की अभिव्यक्ति के साथ लोक सभा, राज्य सभा के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्रदान किये गए हैं, जो कि उनके संवैधानिक कार्यों के निर्वहन के लिये सामान्यतौर से आवश्यक समझे गए हैं।

    संक्षेप में यह सामूहिक विशेषधिकारों तथा व्यक्तिगत विशेषधिकारों का योग है, जिसका उद्देश्य कार्य की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है। ये अधिकार तथा उन्मुक्तियाँ कार्यवाहियों को अनुशासित, प्रभावी तथा अबाधित रूप से विनयमित करने एवं अपने प्राधिकार और प्रतिष्ठा को प्रकट करने के लिये आवश्यक हैं।

    व्यक्तिगत विशेषाधिकार के अंतर्गत बोलने की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से छूट तथा गवाह एवं ज्यूरी बनने की बाध्यता से छूट है।

    सामूहिक विशेषाधिकारों में चर्चा को प्रकाशित करने का अधिकार, अजनबियों को सदन से पृथक करने का अधिकार, सदस्यों तथा बाह्य लोगों को संसद की अवमानना के लिये दंडित करने का अधिकार और सदन के आंतरिक मामलों को विनियमित करने का अधिकार आदि आते हैं।

    यद्यपि संसदीय विशेषाधिकार एक जटिल समस्या बन गई है परंतु निर्वाचित जनप्रतिनिधियों तथा सांसदों के लिये यह विशेषाधिकार आवश्यक है और हमें सच्ची भावना और सच्चे अर्थों में इसका समाधान करना चाहिये।

    किसी संविधान के सजीव बने रहने के लिये इसमें वृद्धि आवश्यक है। संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान की गई है, ताकि समाज के विकास में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सके। इसका मुख्य उद्देश्य समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता तथा राष्ट्र की अखंडता के उच्च आदर्शों को बताना, राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों को और अधिक व्यापक बनाना एवं उन्हें मौलिक अधिकारों के ऊपर तरजीह देना है।

    प्रारंभ में संसद द्वारा यह गलत मतलब निकाला गया कि उसके पास संविधान संशोधन की असीमित शक्तियाँ हैं, तब ‘बुनियादी संरचना’ के रूप में न्यायपालिका ने इस संसदीय स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाया। यह निर्धारित करना सर्वोच्च न्यायालय का कार्य होगा कि ‘बुनियादी संरचना’ क्या है। इसके अलावा, न्यायपालिका संसद के द्वारा बनाए गए कानूनों की संवैधानिक वैधता का परीक्षण कर सकती है तथा विरोधाभास की स्थिति में उन्हें अमान्य ठहरा सकती है।

    संसद जनता की इच्छा को समाहित करती है तथा लोकतंत्र का सारतत्व भी यही है कि जनता की इच्छा प्रबल होनी चाहिये।

    संविधान ने लोकतंत्र की रक्षा के लिये पर्याप्त रक्षक उपाय तथा प्रतिसंतुलन प्रदान किया है। सभी अंग कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका अपने अधिकार क्षेत्र में कार्य करते हैं और संविधान उनके द्वारा एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने की कोशिश पर रोक लगाती है। बजट, महालेखापरीक्षक, संसदीय समितियाँ, वित्त के ऊपर नियंत्रण, रिट्स, बुनियादी संरचना, प्रस्ताव एवं कटौती, निर्वाचन आयोग तथा अन्य संवैधानिक निकाय व प्रशासनिक न्यायाधिकरण इत्यादि जैसे साधन संसद के कार्यों एवं शक्तियों को सुगम बनाते हैं तथा नियंत्रित करते हैं।

    अतः संसद के कार्यों के नियंत्रण के लिये निगरानी आयोग की आवश्यकता नहीं है। केवल पारदर्शिता बढ़ाने तथा लोकतंत्र के मौजूदा संस्थानों को सशक्त करने की आवश्यकता है।