“प्रथम विश्व युद्ध और रूसी क्रांति से हुए अर्थव्यवस्था के विनाश की भरपाई में लेनिन की नई आर्थिक नीति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।” चर्चा करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- नई आर्थिक नीति का संक्षिप्त परिचय।
- इस नीति के तहत सरकार द्वारा उठाए गए कदम।
- निष्कर्ष
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1920-21 में हुए विद्रोह के बाद लेनिन ने साम्यवादी व्यवस्था में परिवर्तन करने और पूंजीवादी व्यवस्था की ओर लौटने के उद्देश्य से “नई आर्थिक नीति” की घोषणा की। लेनिन ने यह अनुभव किया कि साम्यवाद को बचाने के लिये थोड़ा सा पूंजीवाद अपनाना पड़ेगा।
नई आर्थिक नीति का उद्देश्य श्रमिक वर्ग और कृषकों की आर्थिक स्थिति को मज़बूत बनाना, पूरे देश की कामगार आबादी को देश की अर्थव्यवस्था के विकास में सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित करना व अर्थव्यवस्था के मूल उपकरणों को नियंत्रित रखते हुए आंशिक रूप से पूंजीवादी व्यवस्था को कार्य करने की अनुमति देना था। नई आर्थिक नीति के तहत उठाए गए कदम निम्नलिखित थे –
- किसानों से उनकी अतिरिक्त उपज की अनिवार्य वसूली बंद कर दी गई। अब किसानों को अपनी अतिरिक्त उपज को बाज़ार में बेचने और उससे प्राप्त आय को अपने पास रखने की अनुमति दी गई। इस प्रकार किसानों ने नई आर्थिक नीति का स्वागत किया और वे उत्साह के साथ राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपना सहयोग देने लगे।
- मुद्रा में स्थायित्व आने पर सरकार ने अनाज के स्थान पर रूबल में कर लेना प्रारंभ कर दिया था।
- सरकार ने ज़मीनों का राष्ट्रीयकरण करके उसे किसानों को बाँट दिया था। इस कदम से बड़ी-बड़ी व्यक्तिगत ज़मींदारियाँ समाप्त हो गईं।
- उपभोग के बाद भी काफी अन्न बाज़ार में बिकने के लिये आता था। ज़मीनों के राष्ट्रीयकरण के दस वर्षों बाद रूस विश्व का अन्न भंडार कहलाने लगा था। अतः बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक तरीकों से कृषि की आवश्यकता थी, जिसके लिये व्यक्तिगत किसानों से ज़मीन लेकर समूहों के सुपुर्द कर दी गई।
- 1929-30 में कृषि का भी राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इस कदम का उद्देश्य कृषि के उत्पादन को डेढ़ गुना बढ़ाना था। हालाँकि ज़मीन, पशु और औज़ार छिन जाने से किसान विद्रोही हो गए थे।
- इसके पश्चात खेती का सामूहिकीकरण भी कर दिया गया। सामूहिक खेती की व्यवस्था से रूसी सरकार ने समाजीकरण की ओर एक बड़ा कदम उठाया।
- अतिरिक्त उपज को बाज़ार में बेचने की अनुमति मिलने से निजी व्यापार का प्रचलन शुरू हो गया। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। नवीन आर्थिक नीति के शुरुआती वर्षों में औद्योगिक पदार्थों की लगभग आधी मांग इन्हीं निजी व्यापारियों के बाज़ार से पूरी होती थी।
- 1917 में सत्ता मिलते ही बोल्शेविकों ने कारखानों पर से पूंजीपतियों का स्वामित्व हटाने के बाद उनका संचालन मज़दूरों की प्रबंध समितियों को दिया। जब ये प्रबंध समितियाँ इनका संचालन ठीक ढंग से नहीं कर पाईं तो नई आर्थिक नीति में उद्योगों के राष्ट्रीयकरण के साथ-साथ पूंजीवादी व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय भी लिया गया। विभिन्न उद्योगों के सिंडिकेटों को मिलाकर एक केन्द्रीय व्यवसाय संस्थान की स्थापना की गई, ताकि ये उद्योग आपसी सहयोग से अपना विकास कर सकें।
- गृह-युद्ध के कारण रूस की मुद्रा का पूरी तरह अवमूल्यन हो चुका था। इसके लिये 1922 में शासकीय बैंक को “चवोनेत्स” बैंक नोट जारी करने के लिये अधिकृत किया गया। 1924 में एक और मुद्रा जारी करके रूबल की विनिमय दर स्थिर कर दी गई।
- रूस में बड़े उद्योग जैसे- रेल, खानें आदि सरकारी नियंत्रण में थे। 1922 में लगभग चार हज़ार छोटे उद्योगों को लाइसेंस जारी कर विदेशी कंपनियों को भी उद्योग लगाने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
- नई आर्थिक नीति के लागू हो जाने से बलात् श्रम करवाने और समान वेतन न देने की नीति समाप्त हो गई। 1922 की नई श्रमिक संहिता द्वारा मज़दूरों को अनेक लाभ दिये गए। प्रतिदिन 8 घंटे कार्य की समय-सीमा, वेतन सहित दो सप्ताह का अवकाश, बीमारी के दौरान वेतन और चिकित्सा लाभ जैसे सामाजिक बीमा के लाभ आदि प्रदान किये गए।
स्पष्ट है कि लेनिन की इस नई आर्थिक नीति का दूरगामी परिणाम यह हुआ कि रूस पुनर्निर्माण संभव हो सका। इससे न केवल किसानों और कृषि का कल्याण हुआ, बल्कि औद्योगिक उत्पादन में भी वृद्धि हुई। इस अवधि में सूती वस्त्रों, खनिज तेल, कोयला, इस्पात, लोहा , चीनी आदि के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। इस प्रकार लेनिन ने एक मिली-जुली परिवर्तनशील व्यवस्था और राजकीय पूंजीवाद के माध्यम से रूस की क्षतिग्रस्त अर्थव्यवस्था को सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।