कुछ राज्यों और क्षेत्रों को प्राप्त विशेष दर्जा अधिक जनांदोलनों को भड़काने का काम करता है। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
04 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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औपनिवेशिक सत्ता से मुक्ति के बाद भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती भारतीय राज्यों के एकीकरण की थी। राज्य तथा इन राज्यों के कुछ क्षेत्रों की विशिष्ट नृजातीय तथा राजनीतिक पृष्ठभूमि थी। इस पृष्ठभूमि में भारत ने संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया, जो कि पूरे भारत पर एकसमान रूप से लागू होती है, परंतु संविधान में कुछ क्षेत्रों के मूल निवासियों की सांस्कृतिक पहचान रीति रिवाजों एवं राजनीतिक हितों की रक्षा के लिये विशेष दर्जा दिया गया है।
इन राज्यों को प्राप्त विशेष दर्जा संविधान के अनुच्छेद 370 एवं 371 द्वारा संरक्षित है। इसके अलावा संविधान की पाँचवीं एवं छठीं अनुसूची के द्वारा जनजातीय क्षेत्रों तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये विशेष प्रावधान किये गए हैं।
कुछ राज्यों को विशेष दर्जा दिये जाने का एकमात्र उद्देश्य नृजातीयता, संस्कृति तथा भू-भाग को संरक्षित करना तथा जनजातीय लोगों को लोकलुभावनवाद से सुरक्षा प्रदान करना था, परंतु इसकी परिणति अलगाववाद, संप्रदायवाद तथा लोगों के बीच पार्थक्य की भावना के रूप में हुई।
कश्मीर तथा नागालैंड ने आज़ादी तक की माँग कर डाली और मणिपुर एवं असम जैसे राज्यों में राज्य तथा केंन्द्र सरकार के विरुद्ध हिसक घटनाएँ हुई हैं। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र में गोरखालैंड की माँग तथा आंध्र प्रदेश द्वारा विशेष राज्य के दर्जे की माँग की घटनाएँ इसके ताजा उदाहरण हैं।
इन राज्यों को विशेष दर्जा दिये जाने के कारण यहाँ के लोगों में क्षेत्रवाद तथा रूढि़वाद की भावना पनपी है।
विशेष दर्जे की आड़ में इन राज्यों की मांगें बढ़ती ही जा रही हैं।
यहाँ तक कि कुछ राज्यों को भी विशेष श्रेणी का दर्जा प्रशासनिक एवं आर्थिक मानदंडों के आधार पर दिया गया है, परंतु अब और राज्यों ने भी अधिक विशेषाधिकारों की मांग की है।
संविधान द्वारा कुछ राज्यों को विशेष दर्जा देने का उद्देश्य अंशतः ही पूरा हो पाया है। इनके रीति-रिवाजों तथा नृजातीयता को सुरक्षित करने के साथ-साथ, इन्हें विकास की मुख्यधारा में भी शामिल करने के प्रयत्न किये जाने चाहिये।
अतिरिक्त सूचनाः
विशेष श्रेणी का दर्जा वाले राज्य तथा विशेष दर्जा प्राप्त राज्य के मध्य अंतरः