किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिये जाने के लिये कौन-से मानदंड स्थापित हैं ? शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिल जाने के पश्चात् किसी भाषा को क्या लाभ प्राप्त होते हैं?
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा –
- भारत की शास्त्रीय भाषाओं का संक्षिप्त परिचय दें।
- शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त करने के आवश्यक मानदंडों को बिंदुवार लिखें।
- शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त भाषा को मिलने वाले लाभ बताएँ।
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कुछ भारतीय भाषाओं की प्राचीन साहित्यिक परंपरा का संरक्षण और संवर्द्धन करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा उन्हें ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा प्रदान किया जाता है। वर्तमान में भारत की 6 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है। भारत की शास्त्रीय भाषाएँ हैं- तमिल, संस्कृत, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और ओड़िया। किसी भी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा निर्धारित कुछ आधिकारिक मानदंडों को पूरा करना आवश्यक होता है। वे मानदंड निम्नलिखित हैं-
- उस भाषा में लिखित आरंभिक ग्रंथों का इतिहास लगभग 1500-2000 वर्ष पुराना होना चाहिये।
- संबंधित भाषा में प्राचीन साहित्य/ ग्रंथों का एक ऐसा समूह होना चाहिये, जिसे उस भाषा को बोलने वाली पीढ़ियाँ अमूल्य विरासत के रूप में स्वीकार करती हों।
- उस भाषा की अपनी मौलिक साहित्यिक परंपरा होनी चाहिये, जो किसी अन्य भाषिक समुदाय द्वारा न ली गई हो।
- शास्त्रीय भाषा और उसका साहित्य, आधुनिक भाषा और साहित्य से भिन्न है, इसलिये शास्त्रीय भाषा और उसके परवर्ती रूपों में विच्छिन्नता हो सकती है।
शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त होने के पश्चात् केंद्र सरकार उक्त भाषा को निम्नलिखित लाभ प्रदान करती है –
- सबंधित भाषा के प्रतिष्ठित विद्वानों को प्रतिवर्ष दो बड़े सम्मान देने की व्यवस्था।
- उस भाषा में अध्ययन के लिये उत्कृष्ट केंद्रों की स्थापना।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से आग्रह कर आरंभिक तौर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में संबंधित भाषा में विशेषज्ञता प्राप्त प्रतिष्ठित शोधार्थियों के लिये शास्त्रीय भाषा की कुछ सीटें आरक्षित करवाना।