दक्षिण भारत के मंदिर धार्मिक आस्था के केंद्र होने के साथ-साथ जल संरक्षण, कृषि और सिंचाई से भी जुड़े रहे हैं। टिप्पणी करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- दक्षिण भारत के मंदिरों द्वारा कृषि एवं सिंचाई के क्षेत्र में किये गए योगदान का बिंदुवार उल्लेख करें।
- निष्कर्ष
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ऐतिहासिक रूप से दक्षिण भारत में खेतों की सिंचाई पानी के छोटे-छोटे स्रोतों द्वारा की जाती थी। इन सिंचाई संसाधनों के निर्माण और संचालन में मंदिर महत्त्वपूर्ण योगदान देते थे। दक्षिण भारतीय मंदिरों और उनके आस-पास के क्षेत्रों में होने वाली कृषि व सिंचाई के बीच संबंध को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
- प्राचीन काल से भारत के मंदिरों में या उनके आस-पास कुंड या सरोवर के निर्माण की परंपरा रही है, उदाहरण के लिये तमिलनाडु के कुंबकोनम में स्थित महामहम सरोवर।
- ज़्यादातर मंदिरों में पूजा-पाठ की पारंपरिक पद्धति भी यही रही है कि उससे जुड़े जल स्रोत से मंदिरों में स्थापित देवी-देवता का जलाभिषेक किया जाए।
- दक्षिण भारत के लगभग प्रत्येक मंदिर के पास 150-300 गाँवों की ज़मींदारी हुआ करती थी। मंदिर प्रबंधन किसानों को खेती करने के लिये ज़मीन देता था और उपज का एक निश्चित भाग किसान से ले लेता था।
- यही मंदिरों की आय का नियमित और महत्त्वपूर्ण साधन था। ये मंदिर अपनी आय का अधिकांश भाग कृषि विकास, सिंचाई योजनाओं तथा अन्य आर्थिक क्रियाओं में निवेश कर दिया करते थे।
- दक्षिण भारत के दो महत्त्वपूर्ण साम्राज्य चोल और विजयनगर दोनों ने ही कृषि कार्यों को बढ़ावा दिया, इसके बावज़ूद दोनों में ही सिंचाई के लिये कोई अलग विभाग नहीं था। यह ज़िम्मेदारी ग्रामीण संगठनों और मंदिरों को दी गई थी।
- मंदिरों में चढ़ावे और दान इत्यादि से प्राप्त होने वाली आय का इस्तेमाल सिंचाई साधनों को विकसित करने और नई ज़मीनों के अधिग्रहण के लिये किया जाता था। इन ज़मीनों को सिंचित कर कृषि के लायक बनाया जाता था।
- मंदिरों द्वारा अधिकृत ज़मीन पर सिंचाई का काम बड़े योजनाबद्ध तरीके से किया जाता था। जिस मंदिर की ज़मीन पर नालों की खुदाई होती थी उस मंदिर को एक एकड़ ज़मीन मुआवज़े के तौर पर दी जाती थी।
- नौवीं शताब्दी में बना तिरुपति मंदिर चढ़ावे के धन का कृषि विकास में उपयोग करने वाले मंदिरों का महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। इस मंदिर ने विजयनगर में छोटे-छोटे सिंचाई साधनों को बढ़ावा दिया।
- तिरुपति के पास स्थित कालहस्ती का शैव मंदिर अपने चढ़ावे का इस्तेमाल सिंचाई हेतु नहरों की खुदाई के लिये करता था।
- 1410 के मैसूर के अभिलेखों से भी गाँवो के संगठनों और मंदिरों के बीच सिंचाई साधनों के निर्माण में सहयोगी होने का उदाहरण मिलता है।
कृषि योग्य भूमि का विकास दक्षिण भारतीय मंदिरों के अनेक आर्थिक क्रियाकलापों में से एक था। इस प्रकार स्पष्ट है कि दक्षिण भारतीय मंदिरों से जल संरक्षण और सिंचाई की एक देशज परंपरा ऐतिहासिक रूप से जुड़ी हुई है।