प्राचीन काल में धर्मनिरपेक्षता भारतीय समाज का महत्त्वपूर्ण विशेषता थी। हाल ही में धर्मनिरपेक्षता शब्द को समाचार माध्यमों में लगातार उछाला जाता रहा है। इस संदर्भ में वर्तमान परिदृश्य का विश्लेषण कीजिये, क्या भारत में धर्मनिरपेक्षता खतरे में है? चर्चा कीजिये।
10 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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अति प्राचीन काल से भारतीय समाज ने विभिन्न विचारधाराओं को स्थान दिया है तथा लगभग सभी धर्म भारत में फले-फूले हैं। भारतीय शासकों ने प्रायः एक विशेष धर्म या पंथ को प्रश्रय दिया परंतु अन्य धर्मों के प्रति भी उदार बने रहे। भारत में धर्म जिंदगी का तरीका है, आचरण संहिता है तथा व्यक्ति की सामाजिक पहचान है।
यद्यपि भारतीय संविधान ने धर्म को राज्य से पृथक किया है, परंतु भारत में धर्मनिरपेक्षता के अलग पहलू हैं। भारतीय संदर्भ में धर्मनिपेक्षता को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है- समाज में विभिन्न धार्मिक पंथों एवं मतों का सहअस्तित्त्व, सभी पंथों के विकास, मूल्यों को बनाए रखने और समृद्ध करने की स्वतंत्रता तथा साथ-ही-साथ सभी धर्मों के प्रति एकसमान आदर तथा सहिष्णुता विकसित करना। हाल के समय में कुछ सांप्रदायिक झड़पों के बाद मीडिया समूहों द्वारा धर्मनिरपेक्षता शब्द लगातार उछाला गया। यह बार-बार दोहराया गया कि हम भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने में असफल रहे। अगर हम हाल के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो बाबरी मस्जिद, गोधरा दंगे, जम्मू-कश्मीर भूमि समस्या तथा ओडिशा में ईसाई विरोधी आंदोलन धर्मनिरपेक्षता की असफलता के डरावने उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त बीफ बैन, भीड़ दंड, द्वेषपूर्ण भाषण, धर्मस्थलों पर लाउडस्पीकर जैसे मुद्दों ने आग में घी का काम किया है।
विभिन्न समुदायों के मध्य टकराव अपरिहार्य है, क्योंकि वे अलग विचारधारा एवं हितों को साझा करते हैं। यहाँ मीडिया को दो समूहों के मध्य तनाव घटाने के लिये सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये, प्रत्येक झड़प में सांप्रदायिक रंग ढूँढने की कोशिश नहीं करनी चाहिये। भारत में आज धर्मनिरपेक्षता धार्मिक कट्टरवाद, उग्र राष्ट्रवाद तथा तुष्टीकरण की नीति के कारण खतरे में है।
यद्यपि सांप्रदायिक झड़प के कुछ मामले सामने आते रहते हैं, परंतु भारत की सांप्रदायिक संरचना इतनी मजबूत है कि इसके धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर आँच नहीं आ सकती। भारत ने लोकतंत्र के 70 वर्ष पूरे कर लिये हैं, जो कि स्वयं भारत में धर्मनिरपेक्षता की सफलता का प्रमाण है। हालाँकि सांप्रदायिकता की आग को बुझाने के लिये अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सांप्रदायिक विभाजन के रूप में हमारे लचीलेपन तथा हमारे देश की एकता ने उन आदर्शों पर भरोसा दिलाया है जिसकी चर्चा संविधान के प्रस्तावना में की गई है।