भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904 राष्ट्रीय शिक्षा को पीछे की ओर ले जाने वाला अधिनियम था। इस कथन का परीक्षण करें।
21 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
उत्तर की रूपरेखा-
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20वीं सदी की शुरुआत में देश राजनीतिक रूप से अस्थिर था। इस दौरान सरकार को लग रहा था कि भारतीय शिक्षा का स्तर ठीक नहीं है तथा शिक्षण संस्थान क्रांतिकारियों के पोषण के केंद्र बन गए हैं। स्वयं राष्ट्रवादियों को भी लग रहा था कि शिक्षा के स्तर में गिरावट आ रही है। उन्होंने शिक्षा को लेकर सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्याप्त कमियों को दूर करने का कोई प्रयास नहीं कर रही है।
सन् 1902 में सर टॉमस रैले की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया। इस आयोग का उद्देश्य विश्वविद्यालयों की स्थिति का आंकलन करके उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिये सुझाव देना था। इस आयोग की अनुशंसाओं पर आधारित भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 पारित किया गया। इस अधिनियम की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं-
लॉर्ड कर्ज़न ने कार्यक्षमता और गुणवत्ता बढ़ाने के नाम पर विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने का काम किया। इन सब प्रयासों के पीछे उसका वास्तविक उद्देश्य शिक्षित राष्ट्रवादियों की संख्या को कम करना और उन्हें ब्रिटिश सत्ता के लिये प्रतिबद्ध बनाना था।
राष्ट्रवादियों द्वारा इस अधिनियम की तीव्र आलोचना की गई और इसे साम्राज्यवाद को बढ़ावा देने वाले एक कदम के रूप में देखा गया। उन्होंने इसे राष्ट्रवादी भावनाओं का दमन करने वाला अधिनियम माना। इस अधिनियम की गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा “राष्ट्रीय शिक्षा को पीछे की ओर ले जाने वाले अधिनियम” के रूप में आलोचना की गई।
अतः स्पष्ट है कि विश्वविद्यालय अधिनियम भारतीय शिक्षा पद्धति में सुधार के उद्देश्य से नहीं, बल्कि राष्ट्रवादी भावनाओं के दमन और नियंत्रण के लिये पारित किया गया था।