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प्रश्न :
“चिपको उत्तर औपनिवेशिक भारत में प्रथम वृहत् पर्यावरणीय आंदोलन के रूप में प्रसिद्ध हुआ और इसने इस समझ को जन्म दिया कि पर्यावरणीय मुद्दे अक्सर महिलाओं से संबंधित होते हैं, क्योंकि वे ही इसकी अवनति से सबसे ज्यादा दुःख भोगती हैं।” स्पष्ट करें।
25 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- चिपको तथा अन्य पर्यावरणीय आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका का उल्लेख करें।
- महिलाओं और पर्यावरणीय मुद्दों के संबंध को बताएँ।
- निष्कर्ष
देश में हुए कई पर्यावरण संरक्षण आंदोलनों विशेषकर वनों के संरक्षण में महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिये जोधपुर, राजस्थान में 1730 के आस-पास अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में लोगों ने राजा के आदेश के विपरीत पेड़ों से चिपककर उनको बचाने के लिये आंदोलन चलाया था। इसी आंदोलन ने आज़ादी के बाद हुए चिपको आंदोलन को प्रेरित किया, जिसमें चमोली, उत्तराखंड में गौरा देवी सहित कई महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया था।
दक्षिण भारत में भी चिपको आंदोलन की तर्ज़ पर 1983 में ‘अप्पिको आंदोलन’ शुरू हुआ। 38 दिनों तक चलने वाले इस आंदोलन में भी उत्तरी कर्नाटक के गाँवों में महिलाओं ने पेड़ों को गले लगाकर उनकी रक्षा की थी। नर्मदा बचाओ आंदोलन और साइलेंट वैली आंदोलन में भी महिलाओं ने सराहनीय भूमिका निभाई है।
महिलाओं पर पर्यावरणीय मुद्दों के प्रभावों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
- जिन इलाकों में अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं, उन इलाकों में जलावन लकड़ी के लिये महिलाओं को दूर तक भटकना पड़ता है। वहीं कई लघु व कुटीर उद्योगों को कच्चा माल भी इन्ही वनों से प्राप्त होता है, जो महिलाओं के रोज़गार को भी प्रभावित करता है।
- रेगिस्तानी, पठारी और पहाड़ी प्रदेशों में जहाँ जल की भीषण कमी है, वहाँ महिलाओं को जल की व्यवस्था करने के लिये कई किलोमीटर पैदल चलना होता है।
- ग्रामीण भारत में आज भी महिलाएँ कोयले और लकड़ी को जलाकर भोजन तैयार करती हैं। इनसे निकला धुआँ महिलाओं के स्वास्थ्य के लिये बहुत हानिकारक होता है।
- पर्यावरण असंतुलन कृषि को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, जिससे इस क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं की बड़ी आबादी के समक्ष आजीविका की भी समस्या खड़ी हो गई है।
- पर्यावरण असंतुलन के चलते आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के समय सर्वाधिक सुभेद्य महिलाएँ और बच्चे ही होते हैं। इनका राहत और बचाव कार्य चुनौतीपूर्ण होता है।
मेधा पाटकर, वंदना शिवा, हबीबा साराबी(अफगानिस्तान), वांगारी मथाई (अफ्रीका) आदि महिलाएँ भारत और विश्व में पर्यावरणीय मुद्दों पर काम कर रही हैं।
महिलाओं में न केवल पेड़-पौधों अपितु पशु-पक्षियों के प्रति भी संरक्षण की संकल्पना प्राचीन काल से ही विद्यमान है। यही नहीं जल-स्रोतों के प्रति भी संरक्षण की भावना महिलाओं में प्राचीनकाल से ही चली आ रही है, जैसे- गंगा पूजन, कुओं की पूजा व तालाब की पूजा करना आदि।
भारत की सामाजिक रचना में जहाँ महिलाओं की अपेक्षा पुरुष कई गुना अधिक महत्त्वपूर्ण एवं सुविधाभोगी है, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण प्रदूषण ने महिलाओं की जीवन-शैली को बुरी तरह प्रभावित किया है। यही कारण है कि पर्यावरण एवं प्रकृति से सीधे रूप में संपर्क में रहने के कारण ये ग्रामीण महिलाएँ पर्यावरण संरक्षण के प्रति अधिक सचेष्ट हैं।
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