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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    श्वेत व्यापारियों एवं श्वेत अधिकारियों के मध्य अकथित गठजोड़ ने श्वेत सामूहिक एकाधिकार को सुदृढ़ कर देशी पूंजीवाद के विकास को कुंठित कर दिया।’ टिप्पणी करें।

    12 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    भारत का विकसित हस्त निर्मित वस्त्र उद्योग, धातु से निर्मित वस्तुएँ, देशी बैंक प्रणाली एवं व्यापार संतुलन का भारत के पक्ष में होना सिद्ध करता है कि भारत में पूंजीवाद के विकास के सभी आवश्यक तत्त्व विद्यमान थे। परन्तु 18वीं सदी के अंत तक भारतीय प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था पर अंग्रेज़ों का पूर्णतः नियंत्रण हो जाने के कारण विकसित होता नवोदित भारतीय पूंजीवाद धीमा अथवा कुंठित हो गया।

    चूँकि भारतीय प्रशासन में ब्रिटिश अथवा श्वेत अधिकारी उच्च पदों पर नियुक्त थे। अतः उन्होंने कृषि तथा उद्योगों के संबंध में ऐसी कर-राजस्व प्रणाली की व्यवस्था की,जिससे ‘ब्रिटेन’ एवं ब्रिटिशों’ का लाभ अधिकतम हो सके।

    ब्रिटिश व्यापारी भारत को कच्चे माल का भण्डार तथा विनिर्मित वस्तुओं को बेचने की मण्डी भर समझते थे। ब्रिटिश व्यापारियों ने अपने पक्ष में आर्थिक नीतियों का निर्माण करवाकर भारतीय उद्योगों को पीछे धकेल दिया।

    ब्रिटेन में हुई औद्योगिक क्रान्ति तथा उसके फलस्वरूप उत्पादित सस्ती मशीनी वस्तुओं ने भारतीय हस्त निर्मित वस्तु उद्योगों को पतन के कगार पर पहुँचा दिया। बैंक, बीमा तथा नौवहन कंपनियों ने भारत से मौद्रिक लाभ तो कमाया ही, साथ-ही-साथ भारतीय कंपनियों को पनपने भी नहीं दिया। इसके अतिरिक्त भारत में निवेशित प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी ने भी ‘भारतीय पूंजीवाद’ के समक्ष बाधा उत्पन्न की।

    परन्तु इन सबके बावजूद औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय पूंजीपति वर्ग का काफी ठोस आर्थिक विकास हुआ। 1920 के बाद नए क्षेत्रों में ज़्यादातर पूंजी निवेश भारतीय पूंजीपतियों का ही था। आज़ादी के समय देशी बाज़ार पर 72-73 फीसदी तक भारतीय उद्यमियों का ही नियंत्रण था। संगठित बैंकिंग क्षेत्र की कुल जमा राशि का 80 फीसदी भारतीय उद्यमियों का था।

    परन्तु पूंजीपतियों एवं पूंजीवाद का विकास सरलता से नहीं हुआ। इन्हें साम्राज्यवाद की बाधाओं से निपटना पड़ा। ये जितनी तेज़ी से विकास कर सकते थे, उतनी तेज़ी से नहीं कर पाए।

    अतः कहा जा सकता है कि औपनिवेशिक शासन के दौरान श्वेत अधिकारियों तथा व्यापारियों ने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु भारत के देशी पूंजीवाद के विकास को बाधित किया, जिस कारण भारतीय पूंजीवाद एक अस्वस्थ वातावरण में धीमी गति से विकसित हुआ।

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