"एक कुशल नेतृत्व की वजह से एक दुरूह संभावना को यथार्थ में परिवर्तित किया जा सका।" भारतीय रियासतों के एकीकरण के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- सरदार पटेल के व्यक्तित्व का संक्षेप में विवरण दें।
- रियासतों के एकीकरण के लिये पटेल द्वारा किये गए प्रयासों का उल्लेख करें।
- निष्कर्ष लिखें।
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सरदार पटेल को एकता का प्रसिद्ध नीतिज्ञ कहा गया, जिनके पास व्यावहारिक कुशाग्रता रही और जिन्होंने एक स्मरणीय कार्य का संपादन किया। उन्होंने प्रभावशीलता के साथ देशी रियासतों के एकीकरण का प्रबंधन किया, जिसके लिये उन्होंने कूटनीतिक कौशल और दूरदर्शिता का परिचय दिया। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में 562 स्वतंत्र रियासतों के विलय की समस्या जटिल और संवेदनशील थी। लेकिन एक बार ब्रिटिश राज की सर्वोच्चता की समाप्ति के बाद भारत को बाल्कनीकरण से बचाना अनिवार्य था। सरदार पटेल ने जुलाई 1947 में रियासत विभाग का कार्यभार संभाला। उन्होंने देशी रियासतों के तत्काल और अनिवार्य एकीकरण की आवश्यकता को महसूस किया।
- उन्होंने लौह नीति का अनुकरण किया और यह स्पष्ट कर दिया कि वे किसी भी रियासत को न तो स्वतंत्र और न ही भारत के अंदर पृथक अस्तित्व के रूप बने रहने का अधिकार रखने की स्वीकृति देंगे।
- पटेल ने राजाओं की देशभक्ति और राष्ट्रीय संवेदना का आह्वान भी किया और देश हित में उन्हें एक लोकतांत्रिक संविधान के निर्माण से जुड़ने के लिये आमंत्रित किया।
- उन्होंने इन रियासतों को इस बात के लिये राजी किया कि वे अपने रक्षा, विदेशी मामले और संचार के अधिकार भारत सरकार को समर्पित कर दें। अपने कौशल से उन्होंने अलगाववादी राजाओं की एकता को भंग कर दिया।
- 15 अगस्त, 1947 तक केवल हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर को छोड़कर शेष सभी रियासतों का भारत में विलय हो गया। तत्पश्चात् उन्होंने त्रि-चरणीय प्रक्रिया अर्थात् राज्यों के समामेलन, केन्द्रीकरण और एकीकरण का इस्तेमाल किया। एक संघ का गठन करने के लिये रियासतों का विलय किया गया।
- उन्होंने बड़ी कुशलता से जूनागढ़ और हैदराबाद का प्रबंधन किया। जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान के साथ मिलने की इच्छा जताई। जब जनता ने विद्रोह कर दिया तो पटेल ने हस्तक्षेप किया। भारत सरकार ने प्रशासन अपने हाथ में ले लिया। पटेल ने जनमत-संग्रह कराकर इसका भारत में विलय किया।
इस घटना ने स्वतंत्रता के बाद पटेल की प्रसिद्धि को शिखर पर पहुँचा दिया और आज भी वे भारत का एकीकरण करने वाले व्यक्तित्व के रूप में याद किये जाते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में उनकी तुलना बिस्मार्क से की जा सकती है जिसने कुछ ऐसा ही 1860 के दशक में जर्मनी के एकीकरण के लिये किया था।