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प्रश्न :
नदी घाटी की विकास प्रक्रिया का सविस्तार वर्णन करें।
01 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में घाटी का संक्षिप्त परिचय लिखें।
- तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में नदी घाटी की विकास प्रक्रिया का सविस्तार वर्णन करें ।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त और सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
घाटी एक रेखीय अवनमन (गर्त) होता है जो झील, सागर अथवा आतंरिक अवनमन की ओर ढालू होता जाता है। पृथ्वी के भूतल के अधिकांश भाग पर घाटियाँ मौजूद हैं जिन्हें अवनालिका (Gully), कर्षण (Draw), खड्ड (Ravine), दर्रा (Gulch), अवतल (Hollow), रन (Run), एरोयो (Arroyo), महाखड्ड (Gorge), गंभीर खड्ड (Canyon) आदि नामों से जाना जाता है। कुछ घाटियाँ बहते जल द्वारा काटी गई थीं तो कुछ पटल विरूपण की क्रिया द्वारा निर्मित हुई हैं। मृत घाटी, कैलिफोर्निया की महान घाटी, चिली और जॉर्डन की घाटी पटल विरूपणी घाटियाँ हैं।
घाटी तीन सहयोगी प्रक्रियाओं द्वारा आकृति प्राप्त करती है- (i) घाटी का गहरा होना, (ii) घाटी का चौड़ा होना, (iii) घाटी का लंबा होना। नदी घाटी के विकास में उसका गहरा होना और चौड़ा होना कई प्रक्रमों द्वारा प्रभावित होता है जो कि निम्नलखित हैं :
- द्रव चालित क्रिया
- घाटी की तली पर अपघर्षण
- धरातल का अपघर्षण और अपक्षय
नदी घाटी के विकास का सामान्यतः निम्नलिखित दो शीर्षकों के अंतर्गत परीक्षण किया जा सकता है :
- अनुप्रस्थ परिच्छेदिका: नदी की चौड़ाई के आर-पार किनारे-से-किनारे तक परिच्छेद को अनुप्रस्थ परिच्छेदिका कहा जाता है। यह घाटी की ढाल प्रवणता, कगार अनुक्रम, आदि को प्रदर्शित करने का एक आरेखी ढंग है जो घाटी की चौड़ाई और विभिन्न गहराई के बारे में बताता है। प्रारंभिक अवस्था में नदी मुख्य रूप से घाटी का नीचे की ओर कटाव करती है, अर्थात् ऊर्ध्वाधर अपघर्षण अथवा अधोगामी कटान द्वारा नदी अपने तल को गहरा करती है। जहाँ घाटी को गहरा करने की प्रक्रिया तेज़ होती है वहाँ गॉर्ज या कैनियन का निर्माण होता है। नदी के दोनों किनारों की शैलों का अपक्षय द्वारा अवनालिका और सर्पण के रूप में टूटने से घाटी का चौड़ाई में विस्तार होने लगता है जिससे V आकार की घाटी का निर्माण होता है।
- अनुलंब परिच्छेदिका: नदी के उद्गम से लेकर मुहाने तक के भाग को अनुलंब परिच्छेदिका कहा जाता है। जर्मन भाषा में इसे थालवेग कहते हैं। नदी के उद्गम के निकट नदी की अपरदन शक्ति अपेक्षाकृत कम होती है क्योंकि नदी में जल का आयतन और भार कम होता है। सामान्यतः उद्गम और मुहाने के मध्य अपरदन अधिक होता है। उद्गम और मुहाने के इस मध्य भाग के ऊपरी भाग में नदी तल में अनियमितता पाई जाती है, जिसके परिणामस्वरूप क्षिप्रिकाएँ (Repids), झाल (Catracts) और झरने बनते हैं। ये आकृतियाँ धरातल की अनियमितता के कारण या नदी तल में विभिन्न कठोरता वाली शैलों के विभेदी अपरदन के कारण बनती हैं। किंतु ये असमानताएँ अस्थायी होती हैं क्योंकि अपरदन क्रिया के बढ़ने से धरातल समतल हो जाता है।
नदी के मध्य और निचले भाग में परिच्छेदिका निष्कोण हो जाती है अतः नदी धाराएँ विभाजित होकर तट-बंधों के बीच दोलायमान होती हैं जिस कारण निचले भाग में विसर्पण और गोखुर झीलों की बहुलता और गुंथी हुई धाराएँ पाई जाती हैं।
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