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प्रश्न :
वे कौन-सी परिस्थितियाँ हैं, जो प्रवालों के निर्माण में सहायक होती हैं? प्रवाल भित्तियों के वितरण का उल्लेख करते हुए इन पर वैश्विक तापन के प्रभावों की चर्चा करें।
28 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरणउत्तर :
प्रवाल भित्तियाँ या प्रवाल शैल-श्रेणियाँ (Coral reefs) समुद्र के भीतर स्थित चट्टान हैं जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होती हैं। वस्तुतः ये इन छोटे जीवों की बस्तियाँ होती हैं। साधारणत: प्रवाल शैल-श्रेणियाँ, उष्ण एवं उथले जल वाले सागरों, विशेषकर प्रशांत महासागर में स्थित, अनेक उष्ण अथवा उपोष्णदेशीय द्वीपों के सामीप्य में बहुतायत से पाई जाती हैं।
प्रवालों के निर्माण के लिये निम्नलिखित परिस्थितियाँ सहायक होती हैं-
- प्रवाल मुख्य रूप से उष्णकटिबंधों में पाए जाते हैं, क्योंकि इनके जीवित रहने के लिये 20°C - 21°C तापक्रम की आवश्यकता होती है।
- प्रवाल कम गहरे क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये 200 से 250 फीट से अधिक गहराई में मर जाते हैं, क्योंकि प्रवाल को पर्याप्त ऑक्सीजन तथा सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता।
- प्रवाल के विकास के लिये स्वच्छ जल आवश्यक है, क्योंकि अवसादों के कारण प्रवालों का मुख बंद हो जाता है और वे मर जाते हैं।
- अत्यधिक प्रवणता प्रवाल के विकास के लिये हानिकारक होती है। 27-30% सागरीय लवणता इसके विकास के लिये उपयुक्त होती है।
- सागरीय धाराएँ प्रवालों के लिये लाभदायक होती हैं क्योंकि ये प्रवालों के लिये भोजन उपलब्ध कराती हैं। इसी कारण बंद सागरों में कम प्रवाल पाए जाते हैं।
प्रवालों का वितरण-
- विश्व के सर्वाधिक प्रवाल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पाए जाते हैं। ये भूमध्य रेखा के 30 डिग्री तक के क्षेत्र में पाए जाते हैं।
- विश्व में पाए जाने वाले कुल प्रवाल का लगभग 30% हिस्सा दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में पाया जाता है। यहाँ प्रवाल दक्षिणी फिलिपींस से पूर्वी इंडोनेशिया और पश्चिमी न्यू गिनी तक पाए जाते हैं।
- प्रशांत महासागर में स्थित माइक्रोनेशिया, वानुआतु, पापुआ न्यू गिनी में भी प्रवाल पाए जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर स्थित ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया की सबसे बड़ी और प्रमुख अवरोधक प्रवाल भित्ति है।
- भारतीय समुद्री क्षेत्र में मन्नार की खाड़ी, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार आदि द्वीप भी प्रवालों से निर्मित हैं।
- ये प्रवाल लाल सागर और फारस की खाड़ी में भी पाए जाते हैं।
प्रवालों पर वैश्विक तापन का प्रभाव-
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री-जल का ताप बढ़ने से प्रवाल भित्ति का विनाश होने लगता है | वर्तमान में लगभग एक-तिहाई प्रवाल भित्तियों का अस्तित्व ताप वृद्धि के कारण संकट में पड़ गया है।
- तापमान में बदलाव से प्रवाल आसानी से प्रभावित हो जाते हैं। तापमान के दबाव, यहाँ तक कि 1-2 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी से ही प्रवाल और शैवाल के बीच संतुलन गड़बड़ा जाता है और शैवाल अलग होकर बिखरने लगते हैं। इस बिखराव से मूंगे का रंग और चमक फीकी पड़ जाती है और वे निर्जीव से दिखने लगते हैं।
- इस वर्ष भूमध्य रेखा के आस-पास अप्रैल और मई के दौरान तापमान सामान्य से काफी अधिक था। इसी क्षेत्र में प्रवाल का क्षय सबसे अधिक दिखा है। ब्लीचिंग से प्रवाल कमज़ोर पड़ जाते हैं और इनमें इनके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ऊर्जा भी नहीं बचती। इस कारण लगातार ब्लीचिंग से इनमें खुद ही सुधार होने की संभावनाएँ कम बचती है।
प्रवाल भित्ति मृत होने के बाद भी पुनर्जीवित हो सकती हैं, लेकिन इसमें बहुत समय लगता है, जो कुछ वर्षों से लेकर दशकों तक हो सकता है। प्रवाल भित्तियाँ मछलियों और अन्य समुद्री जीवों के लिये ‘नर्सरी’ का काम करती है, जहाँ इन जीवों का प्रारंभिक विकास होता है और प्रवाल भित्तियों में ही समुद्री जीवों को भोजन सुरक्षा और आवास प्राप्त होता है। ये समुद्री पर्यटन के लिये आकर्षण का केंद्र होते हैं। प्रवाल भित्तियों को ‘महासगारों का वर्षावन’ भी कहते हैं, क्योंकि ये समुद्री जैव विविधता के भंडार होते हैं, अतः इनका संरक्षण आवश्यक है।
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