अत्याचार निवारण अधिनियम (SC/ST एक्ट) के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय का विश्लेषण कीजिये।
13 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता है, जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के लोगों का उत्पीड़न करता है।
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए इस एक्ट के तहत दर्ज केस में आरोपी की तुरंत गिरफ़्तारी पर रोक लगाई है। इस निर्णय का दलित संगठनों द्वारा मुखर विरोध किया जा रहा है।
निम्नलिखित पक्ष, विपक्ष के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं द्वारा इस निर्णय के लाभ व हानियों को समझा जा सकता है-
पक्ष: सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार इस एक्ट के तहत दर्ज केस से संबधित सभी पहलुओं की पुलिस द्वारा जाँच की जाये। जिससे कि शिकायतकर्त्ता तथा आरोपी दोनों के साथ न्याय किया जा सके। यह सच है कि आज भी कुछ लोगों द्वारा उन्हीं कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है जो उनकी सुरक्षा के लिये बने हैं। बिना तथ्यों की जाँच-पड़ताल के किसी को आरोपी मान लेना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत (Principle of Natural Justice) के विरुद्ध है। आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014 में SC/ST के तहत लगभग 40,000 केस दर्ज हुए और अगले दो वर्षों में इनकी संख्या एक जैसी ही बनी रही। इनमें केवल 15% मामलों में ही आरोप सही पाए गए हैं। कभी-कभी सामान्य झगड़ों को भी जातिगत रूप दे दिया जाता है जो कानून के दुरुपयोग की वजह बनता है।
विपक्ष: इस निर्णय से अधिनियम की प्रभाविता पर नकरात्मक असर पड़ेगा। इस पर कोई विवाद नहीं है कि प्रत्येक आरोपी को विधि की सम्यक प्रक्रिया संबंधी अधिकार प्राप्त है। लगभग 75 प्रतिशत जनता खासकर महिलाएं तथा हाशिये पर स्थित लोग आज भी शिकायत करने से डरते हैं। अहमदाबाद स्थित सेंटर फॉर सोशल जस्टिस द्वारा किये गए अध्ययन में स्पष्ट किया गया कि कानून प्रवर्तन तंत्र के दलित विरोधी रवैये के कारण भी छूट जाते है ।
लोकतंत्र में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं । ऐसे में किसी भी नागरिक के अधिकारों का हनन अनुचित है चाहे वह दलित हो या सवर्ण। लोगों को हिंसक प्रदर्शन द्वारा नहीं अपितु संवैधानिक तरीकों तथा शांतिपूर्ण ढंग से अपना पक्ष रखना चाहिए ।वहीं दूसरी ओर सरकार की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह पिछड़े समुदायों तथा दलितों के संरक्षण हेतु बनाए गये कानूनों का ईमानदारी पूर्वक भेदभाव रहित दृष्टिकोण अपनाकर अनुपालन सुनिश्चित करे जिससे इन वर्गों के मन में उत्त्पन्न असुरक्षा की भावना को समाप्त कर शासन व न्याय प्रणाली में उनके विश्वास को कायम किया जा सके।