संसदीय संप्रभुता एवं न्यायिक सर्वोच्चता के मध्य ‘समन्वय’ भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषता है। संविधान की प्रमुख विशेषताओं के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण करें
14 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
|
भारतीय संविधान विरोधाभासों के अद्भुत समन्वय से मिलकर बना है। एक ओर इसमें राष्ट्रपति प्रणाली का स्थायित्व है तो दूसरी और संसदीय प्रणाली का प्रतिनिधित्व भी। राज्य की स्वायत्तता होते हुए भी इसमें सकारात्मकता के गुण हैं। संशोधन के प्रावधान न बहुत कठोर हैं और न ही बहुत लचीले। वस्तुतः यह समन्वय हमारे देश की विविधता व विशालता के कारण आया। जहाँ विश्व की लगभग सभी प्रजातियाँ, हजारों अलग-अलग भाषा-भाषी एवं भिन्न संस्कृति को मानने वाले लोग हो वहाँ समन्वीकृत विधान ही सभी लोगों का प्रतिनिधित्व कर सकता है, इसी समन्वय का महत्त्वपूर्ण उदाहरण संसदीय संप्रभुता एवं न्यायिक सर्वोच्चता के बीच है।
हमारा संविधान अमेरिकी संविधान की तरह न तो न्यायपालिका को उस तरह की ताकत देता है कि ‘संविधान वही जो उच्चतम न्यायालय कहे’ और न ही ब्रिटेन की तरह ‘संसद को प्राकृतिक रूप से संभव सबकुछ करने’ की छूट प्रदान करता है। यह तो दोनों के सह-अस्तित्व के साथ एक-दूसरे को प्रभावित करने और प्रभावित होने की व्यवस्था पर आधारित है।
संविधान संशोधन के अतिरिक्त विधि बनाने का अधिकार भी सिर्फ संसद को ही है। लेकिन ब्रिटिश संसद की तरह भारतीय संसद की यह शक्ति निर्बाध नहीं है। न्यायपालिका संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की समीक्षा कर सकती है। न्यायपालिका द्वारा ही सृजित मूल ढाँचे के अतिक्रमण के आधार पर भी संसद द्वारा पारित कानून को शून्य करार दिया जा सकता है।
जहाँ हमारी संसद पारित कानूनों एवं संविधान संशोधनों को संसद की इच्छा को ‘समस्त जन की इच्छा बताती है तो वहीं,संविधान के संरक्षक की हैसियत से हमारी न्यायपालिका उस पर युक्ति युक्त प्रतिबंध लगा देती है। स्वाभाविक रूप से दोनों के मध्य कई बार टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई लेकिन हमेशा की तरह समस्या का हल निकाला गया और धीरे-धीरे हमारी राजनीतिक एवं संवैधानिक प्रणाली और भी परिपक्व हुई है।