प्रश्न. “अंततः अंतर्मन की सत्यनिष्ठा के अलावा कुछ भी पवित्र नहीं है।" यह उद्धरण सत्यनिष्ठा और बाह्य प्रभावों के बीच संबंध के बारे में क्या बताता है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उद्धरण की व्याख्या कीजिये और ईमानदारी के नैतिक महत्त्व को समझाइये।
- व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा और बाह्य दबावों के बीच संघर्ष पर चर्चा कीजिये।
- प्रासंगिक उदाहरण दीजिये और लोक सेवा में आंतरिक दृढ़ विश्वास के महत्त्व के साथ निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
राल्फ वाल्डो इमर्सन का यह कथन, “अंततः अंतर्मन की सत्यनिष्ठा के अलावा कुछ भी पवित्र नहीं है।", बाह्य प्रभावों पर व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा की प्रधानता को रेखांकित करता है। यह इस बात पर ज़ोर देता है कि बदलते सामाजिक मानदंडों, बाह्य दबावों एवं परिस्थितिजन्य चुनौतियों के बीच, किसी व्यक्ति के लिये अंतिम मार्गदर्शक शक्ति उसकी अपनी अंतरात्मा की अटूट सत्यनिष्ठा और नैतिक स्पष्टता होनी चाहिये।
मुख्य भाग:
अंततः अंतर्मन की सत्यनिष्ठा पवित्र है:
- आंतरिक नैतिक मार्गदर्शक के रूप में सत्यनिष्ठा: सत्यनिष्ठा नैतिक सिद्धांतों पर आधारित विचार, वाणी और कार्य के बीच एकरूपता है।
- लोक सेवा के संदर्भ में, जहाँ एक लोक सेवक को प्रायः राजनीतिक दबावों, प्रशासनिक पदानुक्रमों या जनमत से संबंधित परस्पर विरोधी मांगों का सामना करना पड़ता है।
- ऐसी परिस्थितियों में, यह व्यक्ति के अंतर्मन की सत्यनिष्ठा ही है जो एक ढाल के रूप में कार्य करती है तथा इन दबावों के बावजूद नैतिक आचरण बनाए रखने में सहायता करती है।
- सत्येंद्र दुबे और अशोक खेमका इस बात के उदाहरण हैं कि किस प्रकार अटूट सत्यनिष्ठा भ्रष्टाचार को चुनौती दे सकती है तथा लोक सेवा में प्रणालीगत प्रतिरोध पर विजय प्राप्त कर सकती है।
- दृढ़ विश्वास, न कि अंध अनुपालन: यह दृष्टिकोण सांस्कृतिक और संस्थागत दबावों के प्रति अंध अनुपालन के प्रति सावधान करता है। सच्चा नैतिक आचरण मात्र अनुपालन से नहीं, बल्कि एक तर्कसंगत नैतिक निर्णय और गहरे व्यक्तिगत विश्वास से उत्पन्न होता है।
- न्यायपूर्ण शासन का एक स्तंभ के रूप में सत्यनिष्ठा: यह उद्धरण गांधीवादी आदर्श 'अंत्योदय' के (अंततः व्यक्ति की सेवा भावना) के साथ भी सामंजस्य रखता है, जिसे नैतिक सत्यनिष्ठा का एक मापदंड माना जा सकता है।
- जब निर्णय सुविधावाद के बजाय ईमानदारी और विवेक से निर्देशित होते हैं, तो शासन अधिक मानवीय, समावेशी एवं न्यायोचित हो जाता है।
निष्कर्ष:
यह उद्धरण इस बात पर ज़ोर देता है कि सच्चे नैतिक आचरण की उत्पत्ति बाह्य नियमों से नहीं, बल्कि व्यक्ति के अंतः करण से होती है। लोक सेवा के क्षेत्र में, मानसिक सत्यनिष्ठा ही नैतिक शासन की आधारशिला है, जो जनविश्वास को उत्पन्न करती है और लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाती है।