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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. भारत के शास्त्रीय नृत्य रूप केवल कलात्मक अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं, बल्कि परंपरा, दर्शन और आध्यात्मिकता का मिश्रण हैं। उदाहरणों के साथ समझाइये। (150 शब्द)

    21 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्राचीन ग्रंथों में निहित सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के रूप में शास्त्रीय नृत्य को परिभाषित कीजिये।
    • परंपरा, दर्शन और सौंदर्यशास्त्र के मिश्रण को अपने उत्तर के माध्यम से दर्शाइये। अखिल भारतीय प्रतिनिधित्व का उल्लेख करने के लिये विविध उदाहरणों का प्रयोग कीजिये।
    • सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और राष्ट्रीय पहचान को सुदृढ़ करने में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालिये।

    परिचय:

    भरतमुनि के नाट्य शास्त्र (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) में वर्णित भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूप प्रदर्शन कला से कहीं अधिक हैं; ये अभिव्यक्तियाँ हैं जहाँ परंपरा का तत्त्व-मीमांसा से और सौंदर्यशास्त्र का भक्ति से मिश्रण होता है। प्रत्येक रूप भक्ति, धर्म और ब्रह्मांडीय लय का प्रतीक है, जो नृत्य को एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सातत्य बनाता है।

    मुख्य भाग:

    कलात्मकता से परे शास्त्रीय नृत्य

    • दार्शनिक प्रतीकवाद: भरतनाट्यम, शैव और वैष्णव परंपराओं में निहित है, यह ब्रह्मांडीय सिद्धांतों को दर्शाता है, अलारिप्पु से तिल्लाना तक इसका अनुक्रम पाँच तत्त्वों (पंचभूत) का प्रतीक है।
      • जगन्नाथ पंथ से जुड़ी ओडिसी नृत्य कला में त्रिभंगी मुद्रा शामिल है, जो काया, मन और आत्मा के मिलन का प्रतिनिधित्व करती है।
      • कथकली में शैलीगत मुद्राओं और भक्ति संगीत का प्रयोग करके महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों का वर्णन किया जाता है, जो गहरी भक्ति परंपराओं को प्रतिबिंबित करती है।
    • परंपरा और अनुष्ठान अभ्यास का सम्मिश्रण: कथक, उत्तर भारत की कथा-वाचक परंपरा से उत्पन्न हुआ है, जिसमें हिंदू और सूफी भक्ति विषयों का सम्मिश्रण है, विशेष रूप से कृष्ण-राधा से जुड़ी कथाओं में।
      • कुचिपुड़ी नृत्य कला का विकास आंध्र प्रदेश में, भागवतमेला परंपरा से हुआ; भामा कलापम जैसे प्रदर्शन कथा-वाचन और धार्मिक अभिव्यक्ति दोनों के रूप में काम करते हैं।
      • श्रीमंत शंकरदेव द्वारा प्रवर्तित सत्रिया, आध्यात्मिक अभ्यास के एक अभिन्न अंग के रूप में असम के वैष्णव मठों में किया जाता है।
    • सांस्कृतिक और सभ्यतागत निरंतरता: ये नृत्य क्षेत्रीय भाषाओं, पौराणिक कथाओं, वेशभूषा और संगीत परंपराओं को संरक्षित करते हैं, जबकि विविधता में अखिल भारतीय एकता को दर्शाते हैं।
    • कूडियाट्टम, ओडिसी, कथक और अन्य शैलियों को यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के भाग के रूप में मान्यता दी गई है।

    निष्कर्ष:

    भारतीय शास्त्रीय नृत्य जीवंत दर्शन हैं, जो क्षेत्रीय रीति-रिवाजों, धार्मिक आख्यानों और आध्यात्मिक विचारों का सामंजस्य स्थापित करते हैं। यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में, उनका संरक्षण भारत की सॉफ्ट पावर और सभ्यतागत गहनता को सुदृढ़ करता है। इन कला रूपों को बढ़ावा देने से सांस्कृतिक निरंतरता सुनिश्चित हो सकती है।

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