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प्रश्न :
राज्य लोक सेवा में दो दशक की सेवा के बाद, अनुभवी अधिकारी अभिषेक को एक सीमावर्ती राज्य की राजधानी में तैनात किया जाता है। उनकी माँ को हाल ही में कैंसर का पता चला है और शहर के एक प्रसिद्ध कैंसर अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है। उनके किशोर बच्चों ने भी क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में दाखिला ले लिया है। जैसे ही अभिषेक गृह विभाग के निदेशक के रूप में अपनी नई भूमिका में आते हैं, उन्हें एक गंभीर खुफिया रिपोर्ट मिलती है, जिसमें पता चलता है कि पड़ोसी देश से अवैध प्रवासी राज्य में घुसपैठ कर रहे हैं। चिंतित होकर, वह अपनी टीम के साथ सीमा चौकियों का व्यक्तिगत रूप से औचक निरीक्षण करने का निर्णय करता है।
निरीक्षण के दौरान, अभिषेक को पता चलता है कि दो परिवार (कुल 12 व्यक्ति) भ्रष्ट सीमा सुरक्षा कर्मियों की सहायता से सीमा पार करते हुए पकड़े गए थे। आगे की जाँच से पता चलता है कि इन प्रवासियों ने देश में प्रवेश करने के बाद, आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे महत्त्वपूर्ण पहचान दस्तावेज़ों को जाली/फर्ज़ी बनाया था, जिससे वे राज्य के एक विशिष्ट क्षेत्र में बसने में सक्षम हो गए। अभिषेक ने सावधानीपूर्वक अपने निष्कर्षों को एक व्यापक रिपोर्ट में दर्ज किया और इसे राज्य के अतिरिक्त सचिव को प्रस्तुत किया।
एक सप्ताह बाद, अभिषेक को अतिरिक्त गृह सचिव द्वारा बुलाया जाता है, जो उसे रिपोर्ट वापस लेने का निर्देश देता है। अतिरिक्त गृह सचिव उसे सूचित करता है कि रिपोर्ट को उच्च अधिकारियों द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है और उसे चेतावनी देता है कि अनुपालन न करने पर उसे राज्य की राजधानी में प्रतिष्ठित पद से हटा दिया जा सकता है जिससे उसकी आगामी पदोन्नति भी ख़तरे में पड़ सकती है।
प्रश्न:
(a) इस स्थिति में अभिषेक को किन नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है?
(b) सीमावर्ती राज्य में गृह विभाग के निदेशक के रूप में अभिषेक के पास क्या विकल्प हैं और प्रत्येक संभावित विकल्प का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
(c) अभिषेक को कौन-सा विकल्प चुनना चाहिये और क्यों?
18 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़उत्तर :
परिचय:
एक वरिष्ठ लोक सेवा अधिकारी अभिषेक, एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य में गृह विभाग के निदेशक के रूप में तैनात है। व्यक्तिगत तनाव, अपनी माँ के कैंसर और अपने बच्चों की स्कूली शिक्षा से निपटने के दौरान, वह सीमा अधिकारियों के बीच अवैध प्रवास एवं भ्रष्टाचार से जुड़े एक गंभीर सुरक्षा उल्लंघन का पता लगाता है। एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद, उसे अतिरिक्त गृह सचिव द्वारा इसे वापस लेने के लिये दबाव डाला जाता है, साथ ही उसकी नौकरी और पद के लिये निहित धमकियाँ भी दी जाती हैं।
हितधारक
चिंताएँ/रुचियाँ
अभिषेक (निदेशक, गृह विभाग)
राष्ट्रीय सुरक्षा, प्रशासनिक उत्तरदायित्व, परिवार कल्याण के प्रति कर्त्तव्य।
अवैध प्रवासी
बुनियादी आजीविका, सुरक्षा, उत्पीड़न से बचना।
भ्रष्ट सीमा कार्मिक
अवैध गतिविधियों के माध्यम से व्यक्तिगत लाभ।
राज्य प्रशासन
राजनीतिक संवेदनशीलता, प्रशासनिक स्थिरता और सार्वजनिक छवि प्रबंधन।
संघ सरकार
राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमा अखंडता, पहचान प्रणालियों की वैधानिकता।
(a) इस स्थिति में अभिषेक को किन नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है?
- ईमानदारी बनाम व्यक्तिगत हित: अभिषेक को कानून और राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के अपने कर्त्तव्य, कॅरियर एवं पारिवारिक स्थिरता की रक्षा करने की इच्छा के बीच संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
- अपनी माँ की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं और बच्चों की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए, उन पर अपने निजी जीवन एवं व्यावसायिक दायित्वों के बीच चयन करने का दबाव है।
- जनहित बनाम संस्थागत दबाव: अभिषेक ने जिस अवैध प्रवासन और भ्रष्टाचार को उजागर किया है, वह राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले गंभीर मुद्दे हैं, फिर भी उच्च अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट वापस लेने का दबाव जनता की सेवा करने एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उनके कर्त्तव्य के साथ टकराव करता है।
- कानून का शासन बनाम प्रशासनिक पदानुक्रम के प्रति वफादारी: अभिषेक को सिस्टम के भीतर अवैध कार्यों को उजागर करने का काम सौंपा गया है, लेकिन उसे अपने वरिष्ठों (अतिरिक्त गृह सचिव) के प्रति वफादारी और अवैध कार्यों की रिपोर्ट करने के अपने संवैधानिक कर्त्तव्य के बीच नैतिक दुविधा का सामना करना पड़ता है।
(b) सीमावर्ती राज्य में गृह विभाग के निदेशक के रूप में अभिषेक के पास क्या विकल्प हैं और प्रत्येक संभावित विकल्प का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
विकल्प 1: दबाव में रिपोर्ट वापस लेना
- लाभ: इससे व्यक्तिगत और पारिवारिक हितों की रक्षा होती है, जिसमें नौकरी और कॅरियर में स्थिरता शामिल है तथा राज्य की राजधानी में निरंतर नियुक्ति एवं पदोन्नति सुनिश्चित होती है।
- विपक्ष: अपने संवैधानिक कर्त्तव्य और नैतिक जिम्मेदारी (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A) का उल्लंघन करता है तथा भ्रष्टाचार एवं अवैधता को प्रोत्साहित करता है, जो जनता के विश्वास को कमज़ोर करता है।
- सच्चाई को छुपाकर राष्ट्रीय सुरक्षा एवं लोक कल्याण से समझौता करने का जोखिम है तथा लोक सेवा आचरण नियमों का उल्लंघन है।
विकल्प 2: मामले को उच्च अधिकारियों (जैसे: मुख्य सचिव, राज्यपाल या केंद्र सरकार) तक ले जाना
- लाभ: भ्रष्टाचार और अवैध प्रवासन को रोक कर राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अखंडता को बनाए रखता है। नैतिक नेतृत्व का प्रदर्शन करता है, जवाबदेही एवं पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।
- समस्या के समाधान के लिये संस्थागत तंत्र (जैसे: केंद्रीय सतर्कता आयोग, गृह मंत्रालय) का उपयोग किया जाता है।
- यह नैतिक साहस और कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, भले ही इससे तत्काल कार्रवाई में विलंब हो या प्रशासनिक प्रतिरोध आकर्षित हो।
- विपक्ष: विभाग के भीतर तनाव बढ़ता है, जिससे वरिष्ठों के साथ उसके रिश्ते खराब हो सकते हैं। उच्च व्यक्तिगत जोखिम जैसे कि कॅरियर विकास में रुकावट या उसके खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्रवाई की संभावना।
- प्रशासनिक बाधाएँ इस मुद्दे के समाधान को धीमा कर सकती हैं।
विकल्प 3: रिपोर्ट को संशोधित करना और जाँच को गुप्त रूप से जारी रखना
- लाभ: व्यक्तिगत और व्यावसायिक प्रतिबद्धताओं को प्रबंधित करने के लिये समय मिलता है, साथ ही समस्या का समाधान भी होता है। वरिष्ठ अधिकारियों के साथ खुले टकराव से बचा जा सकता है, जिससे तत्काल परिणाम कम से कम हो सकते हैं।
- विपक्ष: आंशिक सत्य या चूक जाँच की अखंडता को कमज़ोर कर सकती है।
- प्रणालीगत मुद्दों को सीधे संबोधित न करके दीर्घकालिक जवाबदेही को कमज़ोर करने की संभावना है।
विकल्प 4: पीछे हटने से इनकार करना और संभावित नतीजों के लिये तैयार रहना
- पक्ष: संवैधानिक नैतिकता और लोक सेवा नैतिकता को कायम रखता है तथा राष्ट्रीय हितों की रक्षा करता है, यह सुनिश्चित करता है कि अवैध प्रवासन मुद्दे को पूरी तरह से निपटाया जाए।
- नैतिक शासन पर द्वितीय ARC अनुशंसाओं के अनुरूप।
- विपक्ष: उच्च व्यक्तिगत लागत, नौकरी छूटना, स्थानांतरण या अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
- संभावित व्यावसायिक अस्थिरता और व्यक्तिगत त्याग के कारण पारिवारिक जीवन में व्यवधान उत्पन्न होता है।
(c) अभिषेक को कौन-सा विकल्प चुनना चाहिये और क्यों?
अभिषेक को विकल्प 2 और विकल्प 4 का संयोजन अपनाना चाहिये।
- उन्हें रिपोर्ट वापस लेने से मना कर देना चाहिये, क्योंकि ऐसा करना उनके पेशेवर कर्त्तव्य का उल्लंघन होगा और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता होगा। साथ ही, उन्हें इस मामले को मुख्य सचिव, राज्यपाल या केंद्र सरकार जैसे उच्च अधिकारियों तक पहुँचाना चाहिये।
- इससे उन्हें कानूनी रूप से स्वयं को सुरक्षित रखने और संस्थागत सहायता प्राप्त करने के साथ-साथ इस मुद्दे को पूरी तरह से दस्तावेजित करने का अवसर मिलेगा।
- ऐसा करके, वह यह सुनिश्चित करते हैं कि पारदर्शिता बनी रहे और अवैध कार्यों पर ध्यान दिया जाए, भले ही इसके लिये उन्हें अपने व्यक्तिगत एवं कॅरियर संबंधी हितों की कीमत चुकानी पड़े।
निष्कर्ष
रिपोर्ट वापस लेने से इनकार करना और मामले को आगे बढ़ाना संवैधानिक दायित्वों, नैतिक अपेक्षाओं और राज्य तथा जनता के दीर्घकालिक हितों को संतुष्ट करता है। हालाँकि व्यक्तिगत रूप से चुनौतीपूर्ण, यह दृष्टिकोण सुशासन और नैतिक नेतृत्व के सिद्धांतों के अनुरूप है जिसे लोक सेवाओं को बनाए रखना है। जैसा कि कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में उचित कहा है: "लोक कल्याण सर्वोच्च कानून है।" अभिषेक को, एक लोक सेवक के रूप में, यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उसके कार्य सभी से ऊपर सार्वजनिक कल्याण को बनाए रखें।
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Print - ईमानदारी बनाम व्यक्तिगत हित: अभिषेक को कानून और राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के अपने कर्त्तव्य, कॅरियर एवं पारिवारिक स्थिरता की रक्षा करने की इच्छा के बीच संघर्ष का सामना करना पड़ता है।